कैन्सर रोग की चिकित्सा | Cancer Rog Ki Chikitsa
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.95 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द हैं । उबर पाण्ड इत्यादि कायिक रोग हैं। ये सभी रोग फिर कर्मज दौपज और कर्मदोषजके मेद्से तीन प्रकारके होते हैं । पूर्वजन्मकृत प्रबछ दुष्कर्मसे होने वाले जो सब रोग केवल भोग या प्रायद्चित्त द्वारा विनष्ट दोते हैं उन्हें क्मज व्याधि कहते हैं। यह कर्मज व्याघि वातादि दोषोंके प्रकोप होनेसे नहदीं होती । दरास्त्रनिदिष्ट विधिके अनुसार चिकित्सा करनेपर भी जो व्याधि प्रशसित नदी होती उन्हें कर्मज व्याघि कहते हैं । अद्दित आहार . विह्वारादि जनित प्रकृपित वायु पित्त कफ द्वारा जो व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं उन्हें दोषज व्याधि कहते हैं । यहाँ प्रशन यदद दो सकता है कि अद्दित भादार विद्दार करनेपर भी पूर्वजन्मकृत सत्कर्मोके कारण रोग उत्पन्न दोना नददीं देखा जाता । अतएव दोषज ब्याधिका कारण भी पूर्वजन्मकृत दुष्कर्म है इसमें कोई सन्देह नदीं है। तब ऐसे स्थ्ोंमें उसे दोषज व्याधि किस तरह कद सकते हैं इसके उत्तरमें यही कद्दा जा सकता है कि . पूर्वजन्मछृत दुष्कर्म दोषज व्याधिका कारण होनेपर भी अदित आहारविद्ार जनित चातादि त्रिदोषोंका प्रकोप ही व्याधि समूहका कारण प्रत्यक्ष देखा जाता है इसीछिये उन्हें दोषज व्याधि कहते हैं । कमंदोपज व्यास... स्वल्पदोषा गरीयांसस्ते ह्ेया कर्मदोपजाः । अन्न कारण डुष्कर्मप्रबलम् । यतो दोषारपत्वेडपि. व्याघेगरी यस्त्वन्ततू कर्मक्षयादेव क्षीर्ण भवति । दोषा स्वत्पा अपि निदानत्वेनोक्ता द्यन्त एवेति दोषाणां कारणता मन्यत इति कर्मदो षजाः । कर्मक्षयातू कर्मकृता दोपजाः स्वस्वमेषजेंः 1 कमेंदोपो दूभवा यान्ति कर्मदोपक्षयात कषयम ॥
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