बनारस संस्कृत सीरीज | Benares Sanskrit Series
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.65 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सटीक प्रशस्तपाद भाष्यम् । ९३३ हेतुश्च । प्रापिपूर्विका८प्रासिविभाग । स च च्रिविधः । अन्यलरकमंज उभयकमेजो विभाग- जश्न विभाग इति । तत्रान्पतर कर्म जो सप कर्म जौ (१) समवायिकारणप्रभवः । संयोगाद्यनुपपत्तों सत्यामुपजायपान- स्वात् अवयविरूपबत् । यद्वा यदेव॑ न भवति तत्संयोगा यनुपपत्तां नोत्पद्यते । यथा संयोगज शब्द इति व्यतिरक विभागकायत्वं चानन्तरमेव वक्ष्याति । लक्षणमाह प्राप्तिपूर्िकाति । न माप्ति अप्राप्ति प्राप्तिविरोधी गुण इत्यथे । अथ प्राप्त्या संयोगेन सह कि दशे कृत कालकृत स्वरूपकतों वा अस्य विरोध । सवे चेतदनुपपन्नमत उक्त प्राप्तिपू- विंकति । तथा च. प्राप्तेबंध्यतावि भागस्य घातकत्वं दर्शितं तेन संपोगविघातकों गुणों विभाग इति संक्षेप । तथा चाज संयोग - वदजों विभागों नास्तीति सुचितम । उपपादिते चेतदिति । एवं सति सं पोगत्रि भाग योर नन्य था सिद्ध पोर्वापर्यानियम लक्षण काये- कारणभावोप्यस्तु न नः कश्चिइशनविरोधः असति संयोगे कस्य विरोधी विभाग स्पादिति वरिरुद्धरव भाव तानिवों ह- प्रयुक्तोय॑ पूर्वापरभावों न. निरुपाधिरिति चेत् कटिः झूणोतु विरुद्धस्व्र भावता हि स्वरूपमेत्र विभागस्प तथाच स्व- रूपलाभाय अपेक्षणीयं न कारणपिति सुष्दववसितं विना- दयविनादकयोरपि कायकारण भाव स्पादिति चेतु । स्थात् । न हि पोवापपेनियम कार्यकार णमभाव इति हातुमुत्सहामह इति । कारणकृतमवान्तरभदमाह स चेति । चः समुचये संयागवत् सोपि त्रिविघ इत्यथ । तदेतद्रिशदयति अन्यतरोति । अत्र विधाद्यमतिदेदशन व्याचष्टे तत्रेति । यथा संयोग उपसपंणक्रि- (१) अन्यतरक्मज उभयकमेजब्ध-पा० ५ पु० ।
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