लाजवन्ती | Lajwanti

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Lajwanti by राजेन्द्र सिंह - Rajendra Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' मैंने माया को पत्थर के एक बर्तन में मक्खन रखते देखा । छाछ की खटास को दूर करने के लिए. माया ने बर्तन में पड़े हुए मक्खन को 'कुए4ँ के साफ़ पानी से कई बार घोया | इस तरह मक्खन इकट्ठा करने का ' विशेष कारण था । एसी बात अम तौर पर साया के किसी सम्बन्धी के अ्राने का पता देती थी । हाँ, अब सुझे याद आया । दो दिन के “बाद माया का भाई अपनी विधया बहन से राखी बैंधवाने के लिए; आाने वाला था । यों तो अक्सर बहने भाइयों के घर जाकर उन्हें राखी नाँघती » पर साथा का भाई श्पनी बहन शौर- मानजे से मिले के लिए. झाप हू थ्रा जाया करता था श्औौर राखी 'बैंघवा ' लिया करता था । राखी बघंवाकर बह अपनी 'विघवा ' बहन को यही विश्वास दिलाता था कि यद्यपि उसका सुद्दाग लुट 'गया है, पर जब तक .उसका भाई जीवित है, . ठसकी रक्षा, उसकी हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी बह छापने कन्धों पर लेता हैं । नन्हें भोला ने मेरी इस घारणा की पुष्टि कर दी। गन्ना चूसते हुए. उसने कहा, “बाबा, परसों मामा जी ब्यायेंगे-न १?” मैंने अपने पोते को प्यार से गोद. में उठा लिया 1. मोला का शरीर *ै बक' सोया




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