मेवाड़ और मारवाड़ | Mevad Or Marvad

Mevad Or Marvad by शिवब्रतलाल - Shivbratlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हवन में रु डी ध की ( ह१ 10110 भंडार हैं जिस से प्रत्येक जन को अवगत होने की अवश्य- कता है | शोक | कि यह पृष्तक अपनी अतिकायता (अधिक झर्वामत ) व बहुमूल्यता के कारण सब साधारण के हाथों तक नहीं पहुंच सकती थी मिस गबरेल फ्टिंग साहिबा ने उनका सार लिखा दर हम झाब उन से छोर सर जाजे बर्डाउश' साहब बहादुर के० सी० श्राई० से आज्ञा लेकर टाड राजस्थान से सहायता लेने व मनोर॑जक चुद्धि करने के पश्चात उसको छाय्ये जाति के सुदिक्षित नव युवकों के भेंट [नज़र| करते हैं और परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि जिप्त पवित्र श्र उच्च उद्देश्य को लेकर यह लिखी गई है वह उसके पाठ श्ौर अध्ययन से शूरो हो ्ौर हमारे पढ़ने वाडि अपने पूचैजों के कारनामों का स्मरण करते हुए झपनी वास्तवविकता के समझने श्रौर उन्हीं की तरह मनुष्यस्व के पथ पर चलने का उद्योग करें | यदि पढ़ने वालों के हृदयों पर ऐसे प्रभाव उत्पन्न हुए तो कषेखक द्पने परिश्रम को सुफल समझ कर घन्य २ होगा हनन यह इच्छा है मेरी प्यारों ! सत्य कहूं' में तुम से हममें सभी नेक घार्मिक हों; मघुर वचन कहूँ मुख से । विद्वान हों देश के सेवक, चतुर गुणी सब बिध से. साहस करें दुःख सब नाशे, बल पाकर बल निधसे । १, ही द्विवव्रतलाल ही




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