विष्णुपुराण का भारत | Vishnupurana Ka Bharata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.6 MB
कुल पष्ठ :
427
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. सर्वानन्द पाठक - Dr. Sarvanand Pathak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विष्णुपुराण
उपलब्ध पुराण वाइमय में ब्रह्माण्डपुराण, विष्णुपुराण, पद्मपुराण और
वायुपुराण को प्राचीन माना जाता है । इस पुराण में बताया गया है--
वेदव्यास ने आख्यान, उपाख्यान, गाथा और कल्पशुद्धि के साथ पुराणतंहिता
की रचना की । व्यास के सुतजातीय लोमहुषंण नामक एक प्रसिद्ध दिष्य
थे। उन्होंने उप दिष्य को पुराणसंहिता अपित की । लोमहुषंण के सुमति,
मग्विवर्चा, मित्रयु, शांदपायन, अकृतब्रण और सावष्य नामक ६ दिप्य थे ।
इनमें से कश्यपवंद्ीय अकृतब्रण, सावण्यं और शांद्पायन --इन तीनों ने लोम-
हुषंण से मूलसंहिता का अध्ययन कर भर उस अधीत ज्ञान के आधार पर एक
पुराणसंहिता की रचना की । उक्त चारों संहिताओं का संग्रहरुप यह विष्णुपुराण
हैं। ब्राह्मपुराण भी समस्त पुराणों का आद्य माना गया है। पुराणविदों ने
पुराण के अठारह भिद किये हैं” ।
अब स्पष्ट है कि विष्णु और ब्राह्मपुराण समस्त पुराणों की अपेक्षा प्राचीन हैं ।
भगवाच् वेदव्यास ने केवल एक पुराणसंहिता की रचना की थी । उस एक से
लोमहुषंण के तीन दशिष्यों ने तीन संहिताओं का प्रणयन किया । चिष्णुपुराण के
उपर्युक्त उद्धरण से यह भी ज्ञात होता है कि सर्वप्रथम ब्राह्मपुराण की रचना
सम्पन्न हुई । उसके पशचात् पद्मपुराण रचा गया और तदनन्तर विष्णुपुराण ।
विष्णुपुराण ही एक ऐसा पुराण' है, जिसमें पश्चलक्षणरूप परिभाषा श्रटित
होती है । सू्टि-निर्माण, प्रलय, ऋषि भौर सुनियों के वंदा का इतिवृत्त, राजाओं
और पौराणिक व्यक्तियों के उपाख्यान एवं धर्म के विविध अज्ञों का निरूपण
इस पुराण में किया गया है । प्रसंगवद स्वर्ग, नरक, भूलोक, भुवर्लोक, चतुदेश
विद्याएँ, विभिन्न प्रकार के उपदेश भादि भी इस ग्रंथ में प्रतिपादित हैं । अतः
समाज और संस्कृति के निरूपण की दृष्टि से इस पुराण का महत्त्व सर्वाधिक है ।
विष्णुपुराण का रचनाकाल छठी शती के लगभग है । इस पुराण में गुप्त
राज़वंदा का विस्तारपुर्वंक वर्णन किया गया है। अतः छठी दाती से पहले
इसका रचनाकाल नहीं हो सकता । ईस्वी सन् ६२८ में ब्रह्मगुप्त ने विष्णु
धर्मोत्तर के भाधार पर ब्रह्मसिद्धा्त की रचना की । अतः स्पष्ट है कि ६२८
ईस्वी के पदचातु भी इस ग्रंथ का रचनाकाल नहीं माना जा सकता । विषय
सामग्री और शी आदि को देखने से अवगत होता है कि इस ग्रन्थ का रचना-
दि दि व के कि व.
तु० क० विष्णुपुराण ३६।१६-२४
| च. |]
कल, व्यय अकपसस न न प
User Reviews
No Reviews | Add Yours...