विष्णुपुराण का भारत | Vishnupurana Ka Bharata

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Vishnupurana Ka Bharata by डॉ. सर्वानन्द पाठक - Dr. Sarvanand Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विष्णुपुराण उपलब्ध पुराण वाइमय में ब्रह्माण्डपुराण, विष्णुपुराण, पद्मपुराण और वायुपुराण को प्राचीन माना जाता है । इस पुराण में बताया गया है-- वेदव्यास ने आख्यान, उपाख्यान, गाथा और कल्पशुद्धि के साथ पुराणतंहिता की रचना की । व्यास के सुतजातीय लोमहुषंण नामक एक प्रसिद्ध दिष्य थे। उन्होंने उप दिष्य को पुराणसंहिता अपित की । लोमहुषंण के सुमति, मग्विवर्चा, मित्रयु, शांदपायन, अकृतब्रण और सावष्य नामक ६ दिप्य थे । इनमें से कश्यपवंद्ीय अकृतब्रण, सावण्यं और शांद्पायन --इन तीनों ने लोम- हुषंण से मूलसंहिता का अध्ययन कर भर उस अधीत ज्ञान के आधार पर एक पुराणसंहिता की रचना की । उक्त चारों संहिताओं का संग्रहरुप यह विष्णुपुराण हैं। ब्राह्मपुराण भी समस्त पुराणों का आद्य माना गया है। पुराणविदों ने पुराण के अठारह भिद किये हैं” । अब स्पष्ट है कि विष्णु और ब्राह्मपुराण समस्त पुराणों की अपेक्षा प्राचीन हैं । भगवाच्‌ वेदव्यास ने केवल एक पुराणसंहिता की रचना की थी । उस एक से लोमहुषंण के तीन दशिष्यों ने तीन संहिताओं का प्रणयन किया । चिष्णुपुराण के उपर्युक्त उद्धरण से यह भी ज्ञात होता है कि सर्वप्रथम ब्राह्मपुराण की रचना सम्पन्न हुई । उसके पशचात्‌ पद्मपुराण रचा गया और तदनन्तर विष्णुपुराण । विष्णुपुराण ही एक ऐसा पुराण' है, जिसमें पश्चलक्षणरूप परिभाषा श्रटित होती है । सू्टि-निर्माण, प्रलय, ऋषि भौर सुनियों के वंदा का इतिवृत्त, राजाओं और पौराणिक व्यक्तियों के उपाख्यान एवं धर्म के विविध अज्ञों का निरूपण इस पुराण में किया गया है । प्रसंगवद स्वर्ग, नरक, भूलोक, भुवर्लोक, चतुदेश विद्याएँ, विभिन्‍न प्रकार के उपदेश भादि भी इस ग्रंथ में प्रतिपादित हैं । अतः समाज और संस्कृति के निरूपण की दृष्टि से इस पुराण का महत्त्व सर्वाधिक है । विष्णुपुराण का रचनाकाल छठी शती के लगभग है । इस पुराण में गुप्त राज़वंदा का विस्तारपुर्वंक वर्णन किया गया है। अतः छठी दाती से पहले इसका रचनाकाल नहीं हो सकता । ईस्वी सन्‌ ६२८ में ब्रह्मगुप्त ने विष्णु धर्मोत्तर के भाधार पर ब्रह्मसिद्धा्त की रचना की । अतः स्पष्ट है कि ६२८ ईस्वी के पदचातु भी इस ग्रंथ का रचनाकाल नहीं माना जा सकता । विषय सामग्री और शी आदि को देखने से अवगत होता है कि इस ग्रन्थ का रचना- दि दि व के कि व. तु० क० विष्णुपुराण ३६।१६-२४ | च. |] कल, व्यय अकपसस न न प




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