जयंत भाग - १ | Jayant Bhag - 1
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.01 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)' दृश्य ] पहला कक ९
जयंत--नहीं,; में माँ के पास रहूँगा !
गोरी बाइर जाकर महल्लेवालों को जमा करती है 1)
गौरी--( पुरुषों से » तुम लोगों मे क्या नाममात्र को भी
मनुष्यता नहीं रह गई ? हरिबल्लभ मर गया । उसके बाल-बच्चे
अनाथ होगये । आज दिन-दहाड़े उसकी कन्या कुसम को बसंती
की गोद से दुष्ट लोग छीन लेगये । तुम लोग हाहमकार सुन
रहे हो और कोई वालते तक नहीं, इससे तो स्त्री बनकर तम्दे
घर के शन्दर बैठना 'धिक शोभा देता । बसन्ती का भी शरीर
छूट ,गया; भला, अब उसके शरीर का तो अंतिम संस्कार
कर आओ |
( लोग दुःख से पीडित होकर हरिवल्लभ के घर में जाते है श्र
बसन्ती के शरीर को र्मशान-भूमि के ' लेजाने की तैयारी करते हैं ) ।
गोरी--ाझ्यो जयंत, घर चले ।
( गौरी जयंत के श्रपने घर ले जाती है । )
दूसरा दृश्य
समय--सुर्यास्त के थोड़ा दी बाद ।
स्थान --असेठ मनोहरलाल का अंतःपुर ।
( कथाणी तुबसो के चबूतरे के पास दैठकर सन्द स्वर से प्राथना
के भजन गा रदी है 19
मं माँग सो दो,
मेरे प्रश्न! मैं माँग सो दो ।
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