जयंत भाग - १ | Jayant Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Jayant Bhag - 1  by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
' दृश्य ] पहला कक ९ जयंत--नहीं,; में माँ के पास रहूँगा ! गोरी बाइर जाकर महल्लेवालों को जमा करती है 1) गौरी--( पुरुषों से » तुम लोगों मे क्या नाममात्र को भी मनुष्यता नहीं रह गई ? हरिबल्लभ मर गया । उसके बाल-बच्चे अनाथ होगये । आज दिन-दहाड़े उसकी कन्या कुसम को बसंती की गोद से दुष्ट लोग छीन लेगये । तुम लोग हाहमकार सुन रहे हो और कोई वालते तक नहीं, इससे तो स्त्री बनकर तम्दे घर के शन्दर बैठना 'धिक शोभा देता । बसन्ती का भी शरीर छूट ,गया; भला, अब उसके शरीर का तो अंतिम संस्कार कर आओ | ( लोग दुःख से पीडित होकर हरिवल्लभ के घर में जाते है श्र बसन्ती के शरीर को र्मशान-भूमि के ' लेजाने की तैयारी करते हैं ) । गोरी--ाझ्यो जयंत, घर चले । ( गौरी जयंत के श्रपने घर ले जाती है । ) दूसरा दृश्य समय--सुर्यास्त के थोड़ा दी बाद । स्थान --असेठ मनोहरलाल का अंतःपुर । ( कथाणी तुबसो के चबूतरे के पास दैठकर सन्द स्वर से प्राथना के भजन गा रदी है 19 मं माँग सो दो, मेरे प्रश्न! मैं माँग सो दो ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now