बौद्धधर्म और बिहार | Bauddhdharma Aur Bihar

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Book Image : बौद्धधर्म और बिहार  - Bauddhdharma Aur Bihar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्राक्थन ग््‌ जिनके सहारे भगवान्‌ बुद्ध अपने धर्मचक्र को निरन्तर चलाते रहते थ--ये केचिकुसला घम्मा सब्बेते चतूसु अरियसच सु सहहं गच्छन्ति । बौद्ध-दर्शन बौद्ध-दर्शन के मुख्य विपय तीन हैं--दुः्ख प्रतीत्यसमुत्पाद ( क्षणिकवाद ) और अनात्म । है. दुःख--के सम्बन्ध में बाद्धघर्म वाले विवरण में लिखा जा चुका है आर बतलाया गया है कि सांसारिक सारें पदार्थ और शरीर के सारे धर्म दुगख-समुदय हैं । इनकी सम्पूर्ण तृष्णाश्रों का छंदन ही निर्वाण है जो मानवमसात्र के लिए साध्य है । इसी सिद्धान्त के प्रतिपादन में ही वीद्ध-दशंन का विकास ढुआ्रा है । भगवान्‌ बुद्ध ने सकल धर्मों के उन्छेद के लिए ही प्रतीत्यममुत्याद ( न्नणिकवाद ) झ्रौर अअनात्मवाद का सिद्धान्त ऑविष्कृत किया । प्रतीव्यसमुत्याद ही एक ऐसा मिद्धानत है जो भगवान बुद्ध का एकमात्र मोलिक सिद्धान्त कहां जा सकता है । भगवान्‌ बुद्ध के नणिकवाद अर छनात्सवाद को समकने के लिए यह जनना त्ावश्यक है कि उन्होंने अपने दर्शन के प्रतिपादन में स्कन्घ श्रायतन स्रीर घातु--इन तीन मागों में तत्वों का विभाजन किया है । मांग्व्यकार कपिल ने जिस तरह २५ तन्वा को माना है उसी तरह बुद्ध ने ३६ तत्त्व गिनाये हैं जो निर्वाग को छोड़कर ३५४ होते हैं । (क) स्कन्घ--स्कन्घ के सम्बन्ध में यद सिखा गया है कि रूप वदना संज्ञा संस्कार और विज्ञान-- पंचोपादान स्कन्घ कहलाते हैं | इनमें ्ाकाश को छोड़कर चार महा भूत ही रूप कहलाते हैं । सुख-दुग्ख श्रादि के ऑनुमत्र का नाम वेदना है | संज्ञा ऑभिजान को कहते हैं । मन पर जिस किसी चीज की छाप . वासना ) रह जाती है उसे संस्कार कहा जाता है । इसी तरह चेतना ( सांख्य के महत्‌ ) को चुद्ध विज्ञान कहते हैं दर्शन का कहना है कि रूप ( चनुमेहाभूत । के सम्पक से विज्ञान की विभिन्न स्थितियां हीं बेदना संज्ञा अंग संस्कार हैं । इस रहस्य का उदघाटन करते हुए मिड्किस निकाय का सिहावदललसुत्त हता है कि संज्ञा वेदना आर विज्ञान --इन तीनों का श्न्योन्थाश्रय सम्बन्ध है या चावुसो वेदना या च सब्जा ये च किजार हमसे घम्सा संखद्धा नो विसंखट्ा न च लदभा इमेस घम्मान विनिभुजिन्वा नाना करगं फरणापेनु । पुनः दीघनिकाय इन पंचस्कन्चों के सम्बन्ध में कदना है कियेसभी श्रनित्य संस्कृत प्रतीत्यममुत्पन्न क्षयघर्मम श्र विनाश ( निरोंध वर्मा हल इति रूप॑ इति रूपस्स समुदयों इति सूपस्स अथहमों इति चेदना इति वेदनायर समु- दयो इति वेदनाय अधद्गसो इति सम्ला इति सर्ज्ञाय समुदयों इति सस्जाय शथड़सो इति १. मजिकिम-निकाय ( मद दस्थिपदो पस सुत्त । न मूलत्रकु नर विकतिम दादा प्रकतय सन बोडशकस्त विकारों न प्रकृतिने विक्ृति पुरुष ॥... -सांख्य-तन्वकौमुदी




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