कला और संस्कृति | Kala Aura Sanskriti
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.99 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री वासुदेवशरण अग्रवाल - Shri Vasudevsharan Agarwal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कृति का स्वरूप प्र
की रूटियों से ऊपर उठकर उसके नित्य श्रथें को ग्रहण करना चाहिए । आत्मा
को प्रकाश से भर देनेवाली उसकी स्फूर्ति श्रौर प्रेरणा स्वीकार करके आ्रागे बढ़ना
चाहिए; । जब कर्म की सिद्धि पर मनुष्य का ध्यान जाता है तब वह अनेक दोषों
से बच जाता है । जब कर्म से भयभीत व्यक्ति केवल विचारों की उलभन में फैंस
जाता है तब वह जीवन की किसी नई पद्धति या संस्कृति को जन्म नहीं दे पाता ।
तत्व आवश्यक हैं कि पूर्वकालीन संस्कृति के जो निर्माणुकारी तत्व है उन्हें
लेकर हम कर्म में लगें और नई वस्तु का निर्माण करें । इसी .प्रकार भरूतकाल
बतमान का खाद बनकर भविष्य के लिए, विशेष उपयोगी बनता हैं । भविष्य का विरोध
करके पदे-पदे उससे जूफने में तर उसकी गति कुंठित करने में भूतकाल का जब
उपयोग किया जाता है; तब नए, त्रौर पुराने के बीच एक खाई बन जाती है और समाज
में दो प्रकार की विचारधाराएँ फौज कर संघर्ष को जन्म देती हैं । हमें श्रपने भूतकालीन
सादित्य में ्रात्मत्याग श्र मानव-सेवा का आदर्श अहण करना होगा । श्पनी
कला में से अध्यात्म भावों की प्रतिष्ठा और सौन्द्य-विघान . के -अनेक रूपों और
त्रभिपायों को पुनः स्वीकार करना होगा । अपने दाशंनिक विचारों में से उस
दृष्टिकोण को अपनाना होगा जो समन्वय, मेल-जोल, समवाय : और संप्रीति के
जोवनमंत्र की शिक्षा देता है, जो विश्व के भावी सम्बन्धों का. एकमात्र नियामक
दृष्टिकोण कहा जा सकता है । श्रपने उच्चाशयवाले धार्मिक सिद्धान्तों को मथकर
उनका सार ग्रहण करना होंगा । धर्म का अर्थ सम्प्रदाय या मतविशेष का ग्रह
नहीं है।. रूष्याँ .रुचिः्मेद से मिन्न होती रही हैं दौर होती रहेगीं,। घर्म का
मथा हुद्रा सार है.प्रयत्नपूर्वक ्रपने श्रापको ऊँचा बनाना । - जीवन को उठाने-
वाले जो नियम है वें जब -्रात्मा में बसने लगते हैं तभी धर्म का सच्चा आरम्भ
मानना चाहिए; । साहित्य, कला दर्शन और धर्म से जो मूल्यवान सामग्री हमें
मिलन सकती हैं उसे. नए; जीवन के लिए; ग्रहण -करना यही सांस्क्रतिक .कार्य की
उचित दिशा और सच्ची उपयोगिता हैं. ।. .
User Reviews
No Reviews | Add Yours...