तान्त्रिक साहित्य | Tantirik Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही ् द् ल्न्न यह शब्दशानात्मक शास्त्र का भेद है । अवबोधरूप जान में भी वैचिल्य है-- दुद्ध मा का ज्ञान, अशुद्ध मार्ग का ज्ञान, शिव का ज्ञान, सदाशिव का ज्ञान, पशु का जान इत्यादि । माया के प्रकाशकत्व भेद से बोध में भी वैचित्य है । दीक्षा रूप जो जान है उसमें भी नाना प्रकार के मेद हैं--जैसे नैष्ठिक, भौतिक, निर्बीज, सबीज, शिवधर्मी, लोकघर्मी इत्यादि । इसीलिए स्वायम्भुव आगम में कहा गया है कि दिवमुख से उत्पन्न ज्ञान स्वरूपत: एक होने पर भी अर्थसम्बन्ध-भेद से विभिन्न प्रकार का है। इस दृष्टि से दिवज्ञान १० प्रकार का और रुद्रज्ञान १८ प्रकार का है। वक्ता के भेद से जैसे शान भिन्न होता है वैसे ही एक-वक्‍्तुज्ञान भी श्रोता के भेद से भिन्न होता है। शिवागमों में पारम्पर्य तीन हैं और रुद्रागमों में दो है । इसीलिए १०. २० ३० तथा १८२३६, दोनों को मिला कर कुल ६६ भेद है । किरणागम के मतातुसार १० शिवागमों के भेद इस प्रकार है-- क्रम सं०. आगमात्मक ज्ञान प्रथम पाने वाले. रय पाने वाले... २य पाने वाले १ कामिक प्रणव त्रिकल हर श्‌ योगज सुधा भस्मसग प्रभु डे चिन्त्य दीप्ताख्य गोपति अम्बिका | कारण कारणाख्य व प्रजापति पर अजित सुशिय उमेश अच्युत सुदीप्त ईण त्रिमूति हुताशन ७ सुक्ष्म सुध्म भव प्रभज्जन ८ सहसत्र काल भीम मन ९ सुप्रभेद गण अविध्नण दादी ० अंशुमान्‌ अंगु अगर रवि इसी प्रकार किरणागम के अनुसार १८ रुद्रागमों के भेद इस प्रकार हैं --- क्रम सं० आगमात्मक ज्ञान... १स प्राप्तिकर्ता ..... २य प्राप्तिकर्ता ु विजय अनादि परमेदवर २ परमेष्वर श्रीरूप उद्चना | निःद्वास दद्यार्ण शलसभवा




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