शरत - साहित्य | Sharat - Sahitya

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श्री कान्त - Shri Kant

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हेमचन्द्र मोदी - Hemchandra Modi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० श्रीकान्त 'यारीने सिर हिलाकर कहा, “सो तो मैं जानती हूँ. किंतु, इससे तुम्हारे मनमें किसी तरहका दुःख तो न होगा ? ” मैंने हँसकर कहा, “' नहीं, क्यो कि स्टेशानपर पढ़े रहनेकी अपेक्षा तो यह बहुत ही अच्छा है । प्यारी कुछ देर चुप खड़ी रही, फिर बोली, *' यदि मैं होती तो मठ ही त्रक्षके नीचे सो रहती, परतु, इतना अपमान कभी नहीं सहती । ”* उसकी उत्तेजनाकों देखकर मुझसे हँस बिना न रहा गया । वह मरे मुँहस क्या सुनना चाहती है सो मैं बडी देरस खूब समझ रहा था । किन्तु, शान्त स्वाभाविक स्व॒रसे मैने जवाब दिया, “' मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ कि इस बातकी मनमे आने दूँ कि तुम, जान-बूझकर मुझे मीचे सोनेका कहकर, मेरा अपमान कर रद्दी हो । यदि सभव होता, तो तुम उस दफेके समान इस दफ भी मेरे सोनेकी व्यवस्था करती । जाने दो, इन तुच्छ बातोका लकर वाग्वितडा करंनकी ज&रत नहीं, तुम रतनको मेज दो कि मुझे मीचेका कमरा दिखा आव, मैं कम्बछ बिछाकर सा रहूँगा । में बहुत ही थक गया हूँ । ”” प्यारीन कहा, “तुम ज्ञानी आदमी हो, तुम ही मरी ठीक अवस्थाकी न जान सकोग तो और जानेगा कौन ” चलो, बच गई । ” इतना कहकर उसने एक दीर्घ इवास दबाकर पूछा, '' एकाएक़ आनेका सच्चा कारण तो मैं न जान सकी कि कया है? ”” मै बोला,“ पहला कारण तो तुम नहीं सुन पाओगी, किन्तु, दूसरा सुन सकती हो । ”” * पहला क्यो नहीं सुन सर्कूगी ? ” ** अनावश्यक है, इसलिए । *« अच्छा, दूसरा ही सुनाओ | ”” ““ में बरमा जा रहा हूँ । शायद आर फिर कभी मिलना न हो सके । कमसे कम यह तो निश्चित है कि बहुत दिनो तक मिलाप न होगा । जानेके पहले एक दफे तुम्हे दख्खने आया हूँ । ” रतन कमरेमे आकर बोला, “' बाबू , आपके बिस्तर तैयार हैं, आइए । ” मैने खुश होकर कहा, “ चला । ” प्यारीसे कहा, “' मुझे बडी नींद आ रही है । घण्टे-मर बाद यदि समय मिले तो एक दफे नीचे आ जाना,”-मुझे और भी बहुत-सी बाते करनी हैं । ” इतना कहकर रतनकों साथ लेकर मैं बाहर हो गया ।




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