सर्वोदय यात्रा | Sarvodaya Yatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीन उतने ही दब्दो में और उतनी ही तटस्थता से उन्होंने कहां, ' अच्छा, में आता हूँ ।”” जवाब का उच्चारण करने के पहले उद्दोने पूछ लिया कि समेलन-स्थान यहाँते कितनी दूर है | जवाब मिला--तीन सौ मीड समझ लीजिये । विनोबाजी के आने की बात सुन कर सबको आनंद हुआ, लेकिन गायद ही किमी के खयाल में आत्रा हो कि विनोवाजी समन में । पेंद्ल आवेंगे | अपघाद भी नदी बैठक के बाद तुरत ही आश्रम की प्रार्थना थी । प्रार्थना के अत मरे विनोबाजी ने समेठन में जाने की बात का जिक्र किया ओर कहां कि “कल सुब्रह यहां से परघाम जाने का पहले से तय ही। है, बददासे परसों यानें ८ तारीख को समेलन के लिए बंदछ निकल्गा । वादन का उपयोग न करने का मैने कोई ज्त नहीं जिया हैं और अथच्छेद की मेरी कल्पना मे, जों कि आज सुबह की प्रार्थना में मैंने कद्दी है, रेलवे आदि का परित्याग अनिवाये है ऐसी भी वात नहीं हैं, फिर भी भने पैदल जाने का ही तय किया दै। क्योकि जो विचार प्रा विक्रतित नहीं हुआ हें, जिसका सागोपाग देन हम अबतक नहीं हुआ है, उस अविकसित दशा में अपवाद करने की मेरी मनोजत्ति नहीं है। इसलिए पैदल के बजाय वाहन से जाने के लिए मुझे कायल करने में मित्र लोग अपनी बुद्धि-शक्ति न चला कर, पेंदल यात्रा कैसे सुख्वकर-झुमकर होगी टसका खयाल करें ।”” सबाय्ाम-आश्रम का अम-जीवन-सेकरूप प्राथना के बाद निकटवती लोगो का यहीं क्राम रहा कि नकदों देख कर किस सह्ते से, किन मुकामों से जाना आदि विनोबाजी से तय करे । दूसरे लोग मिलने और एक तरह से विदा छेने-देने के लिए. आते- जाते थे। ता० ७ की सुबह की प्राथना में मह्ददेवी नाइ ने “जेथे जातो




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