मार्क्सवाद और साहित्य | Markswad Aur Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.3 MB
कुल पष्ठ :
255
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ् माक्संबाद झौर साहित्य
ए'गेल्स के इस कथन के झथ को बहुत झच्छी तरह सम-
मने की छावश्यकता है । एक साधारण हष्टान्त के द्वारा इसे
समभने की चेष्टा करें । एक श्वाम के बीज को लीजिए; इस बीज
से जो वृक्ष होगा, उससे हजारों झाम के बीज होंगे श्रौर उन
बीजों से फिर श्रगणित बीज उत्पन्न होंगे । सुतरामू एक बीज
के छान्द्र अनन्त बीजों का झस्तित्व संभावना के रूप में बिद्य-
मान है, किन्तु किसी एक बीज को इस मुहु्त में टुकड़ा टुकड़ा
करने पर भी उसके अन्दर अन्य किसी भी बीज का अस्तित्व
नहीं मिलेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । अतएव तक की दृष्टि से,
हमें दो परस्पर विरोधी सत्यों को स्वीकार करना पड़ता हे :--
(क) एक बीज के झन्दर झनन्त बीज विद्यमान हैं (ख) एक
बीज के '्न्द्र दूसरा कोई बीज नहीं है । बीज के न्तनिंद्वित
यह जो भावाभाव विरोध अथवा द्न्द्द है, इस है” श्र “नहीं
है”? की समकालीन विद्यमानता का; विरोध का समाधान गति-
शीलता के द्वारा ही सम्भव है । काल के झन्तह्ीन प्रवाद्द के
द्वारा बंशानुक्रमिक रूप में एक ही बीज की झन्तनिंद्चित अनन्त
संभावना वास्तव में रूपान्तरित द्ोती है । हमारे ज्ञान-शक्ति के
झन्द्र भी घीज की तरदद ानन्त ज्ञान की संभावना रहने पर
भी किसी विशेष काल में हमारे लिए अनन्त ज्ञान का अधिकारी
धोना सम्भव नहीं है; काल की अन्तष्दीन धारा को पकड़ कर
मानवीय ज्ञान उसकी झ्रपरिसीम परिणति की छोर विकसित
होता ज्ञायेगा ।
तः वस्तुवादी दन्दबाद का मौलिक सिद्धान्त दी यह है कि
इस जगत् और जीवन में, वरतु जगत् और मानस जगत् में, कोई
भी घटना, कोई भी भाव एवं भावना चरम आर शाश्वत होने
का दावा नहीं कर सकती । विश्व वस्तु के ( जिसमें मानस-सत्ता
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