मेगास्थनीज का भारत विवरण | Megasthanij Ka Bharat Vivran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.87 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अप्रमेक लियों से विवाइ करने पर रस बचत एस्र हुए किन्तु
कन्या एक हो ई । जब उस के पुत्र युवा हुए तब उस ने
भारतवष को तुल्य भागों में विभक्ता करके अपन पुत्रों को भिन्न २
भागों का राज दे दिया। उसो प्रकार उस न अपनों कन्या के
लिये भी प्रबन्ध किया आर उस रानों बनाया । उस ने कहुत
म नगरों को स्थापित किया जिस में पालीबोथा ( 10110 9)
मबर मे बड़ा अंत प्रसिष्ठ है , उम नगर में उस मे बड़े विशाल
एवम् मुल्यवान् राजप्रासाद बनवाये और बहुत सनुद्यों को
बसाया | नगर को सुरक्षित करन के लिये उम मे चारी ओर बे २
गत स्व मच जे तद! वह जन्न मं मरे जाते थे । छठ दर को जञ को सरगा
फे रपरान्त स्थायों यश प्राप्त का ! सम के वंशज कई पोट़ी तक
राज करत रहें ओर बड़ यड काय करके उन मभी ने ख्याति लाभ
को, किन्तु न तो दे भारत के बाइर चढ़ाई करन गये न उन्हों में
दूसरे देश में उपनिवेश हो स्थापित किया । अन्त में बहत दिन
बात जान पर अनक नगरी न प्रज्ञातंच प्रणानों स्थापित को |
मिकन्टर को चढ़ाई के समय भारतवासियोां वो. प्रचलित
प्रधाश्रों में एक विष ध्यान देन योग्य है । इसे उन के प्राचीन
दाशनिकों न निकाला इ अर यह नियय प्रशंसा योग्य है । वहां
का नियम यह हे कि उन में से कोड किस अवस्था में गुलाम
नहीं दो सकेगा, किन्तु स्वतंत्रता का सुख नलूटत इूए सभी दूसरों
के स्वत्वां को रक्षा करंगी, क्यांकि जो ट्रसरों पर प्रभुत्व करना
नहीं जानते अथवा जिन्ं दूसरों का दासस्व करना नहीं आता
वे्तो एला स्वभाव प्राप्त कर सकते हैं भर यक्ष सवधा रुचित
एवम युक्तिसद्त हू कि नियम का बन्धन सब किसो पर समान
छो किन्तु धन को न्यनता अध्रवा अधिकता लोगों में रे |
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