गढ़वाली साहित्य की भूमिका | Gadwali Sahitya Ki Bhumika

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दामोदर प्रसाद थपलियाल - Damodar Prasad Thapliyal

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श्याम चन्द नेगी - Shyam Chand Negi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रिरै गदवाली साहित्य की भमिः जायू चेंरो ! प्रत्येक जनपद का उत्कर्ष से ही राप्ट्र को उप सम्भव छ। किन्तु जनपद का उत्कप को यो तात्यय नि कि हमारा शन्द्र एकाज़िता आातो या हम राष्ट्र का अन्य उत्थान का कार्यों मां वाघक सिद्ध होवां । यो ध्यान रहो कि जनपद का उत्कप का साथ ही साथ सम्पूर्ण राप्ट्र का हित त भी हम मध्य नजर रखा । राप्ट्र हित ही हमारा मुख्य उद्दश्य होयू चंद | कभी-कभी हमारा सम्युव कुछ पंचीरा प्रदन भी उठ स्वड़ा होंदन ्ोर कुछ विचारकों त या भी आशंका होगा लगदे कि गढ़बाती श्ादि जनपरीय भाषा मा निमोण होण से हमारी राप्ट भाषा हिन्दी का वास्ता विघ्र या कुदछ अझड़्चग पदा करन चाली हू सब दे । दुख का विचार छ कि गट्वाली मापा का सूजन का बजाय दिन्दी की उभिवद्धि डी किले न किया जावा । ये तरह का श्र भी प्रश्न हमारा सम्मुस्य उपस्थित होदन | किन्त यह बान में पहने ही स्पप्ट कर चुक्यों कि जनपदीय मापा स्ीर संस्कति की वद्धि से ही राप्ट की वद्धि हों सके ओर राप्ट्र हित छोर राष्ट्रीय भाप का हित ते ही प्रधान उद्श्य बरक हमु त जनपद आर जनपदीय साहित्य की उन्नत करनी चदे । जनपदीय भापा का सादित्य सूजन करा हमारा उद्देश्य केबल जनपदीय साहित्य ते भकाश मा लोग को छ आर लोकगीत लोक- कथावता आदि का संग्रह से राप्ट्रमापा की भी बुद्धि करनो प्रधान लय छ । किन्तु साथ ही सीलिक रचनाओं त प्रास्साहित करनो भी हमारो कत्त च्य छ ! ये मोलिक रचनायें गढ़वबाली मां होवल या हिन्दी मा । हमारो प्रधान उद्देश्य साहित्य ख्र्टाओं तें प्रोत्साहित करनों छ। यह श्राशंका सचथा निराधार छू कि गढ़ वाली सादित्य सृजन मे हिन्दी साहित्य सूजन की गति मा शिथिलता उत्पन्त करनी आर वित्न पैदा करनो छ । मैं ये तरह का तक से सहमत नि छों कि




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