फरार की डायरी | Farar Ki Dairy
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.91 MB
कुल पष्ठ :
303
श्रेणी :
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No Information available about श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह - Shri Durga Shankar Prasad Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६ _
खसवांजञ वृद्धि होने की सम्भावना हे । यदि उसकी वृद्धि को हम काट
छाँट कर संस्कार युक्त बनाये रखने में ही सीमित कर देंगे तो नये-नये
शब्दों, नये-नये मुद्दावरों या नये ढंग से विचार प्रदशन की प्रगति जो
भाषा में जन भाषा के सम्पक से नित्य श्ातीं रहतीं हैं, उनको हम
रोक देंगे। इसलिए भाषा का जो केवल सांस्कृतिक दीवारों के
भीतर कैद करके रखना चाहते हैं उनकी धारणा गलत ही नहीं
बल्कि हिन्दी के विकाश में महान बाधक है:
भाषा का रूप नित्य बदलता रहना ही प्रगति का चिन्ह है ।
भाषाविज्ञान के परिडतों ने जो भाषा विकाश का इतिहास लिखा है
उससे पता चलता दे कि जा हिन्दी चन्दुवरदाधी के समय में थी
उस का वह रूप 'झाज की हिन्दी का नहीं है या जो 'ंप्रेजी चाउसर के
समय मे थी वह झाज की अंग्रेजी का रूप नहीं है अथवा जो
भोजपुरी या मेथिली विद्यापति की लेंखनी से लिखी गई थी वह आज
की मेथिली या भोजपुरी से भिन्न थी । तो भाषा के सम्बन्ध में अपनी
इस मान्यता के अनुसार ही मेंने इस डायरी में भाषा का प्रयोग किया
है। भाषा से भाव की पुष्टि होती हे अवश्य, पर हमने जो अपने
काव्यशास्त्र में शब्दालक्कार को प्रधानता देकर भाव पर भाषा की
प्रधानता बना दी; उससे दमारी स्वाभाविक आवनाओं की अभिव्यक्ति
में हास अवश्य हुआ है और इम स्वाभाविकता के पथ से हट कर
कृत्रिमता की चमक-दमक से अधिक प्राभावित होने लगे हैं । यही
कारण दै कि आदि कवि वाल्मीकि श्र उसके वाद काली दास की
भाषा परवतत्ती वाण माघ आदि महा कवियों को भाषा से आधिक
सरल, '्रधिक स्वाभाविक और श्धिक सुन्दर है । दमको यदि प्रकृति
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