भद्रबाहु संहिता | Bhadrabahu Samhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.73 MB
कुल पष्ठ :
491
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग् भव्वाहुसंहिता
अपना महरवपूण स्थान रखती हे । बताया गया है कि--''घनिष्ठा उत्तराभाद्पद, अर्विनी, कृततिका,
खगशिरा, पुष्य, मघा, उत्तर।फासगुनी, चित्रा, दिशाखा, मूल एवं उत्तराषाढ़ा ये नछत्र कुछ संशक,; श्रवण,
पूर्वाभाद्रपद, रेवतो, भरणो, रोहिणी, पुनवसु, आश्ठेषा, पूर्वाफाइंगुनी, स्त, स्वाति, उयेष्ठा एवं पूर्वाधाढ़ा
ये नक्षत्र उपकुछ संज्ञक भीर भभमिजित, शतभिषा, शारदा एवं अनुराधा कुलोपकुक संज्ञक हैं ।'' यह
कुलोपकुछका विभाजन पूर्ण्मासीकों होनेवाले नचब्रोंके भाधार पर किया गया है । भमिम्राय यह दै कि
श्रावण मासके घनिष्टा, श्रवण भौर अभिजित्; भाइदपद मासके उत्तराभादपद, पूर्वाभाव्रपद भर शतभिषा;
आश्विन मासके अश्विनी भौर रेवती; कात्तिक मासके कृसिका भौर भरणी; अगहन या. मागंशीषं मासके
खगशिरा भोर रोहिणी; पोप मासके पुष्य, पुनवंसु और भाई; माघ मासके मघा और लाश्ठेपा; फात्गुनी
मासके उत्तराफाल्युनी भीर पूर्वाफाल्गुनी, चैत्र मासके चित्रा और हस्त; बेशाख मासके विशाखा भर
स््राति; ज्येष्ठ सासके उयेष्ठा, मूल भौर अनुराधा एवं आपाढ़ मासके उत्तरापाद़ा और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र बताये
गये हैं । प्रत्येक मासकी पूणमासीकों उस मासका प्रथम नक्षत्र कुल संज्ञक, दूसरा उपकुछ संशक और
तीसरा कुछोपकुछ संज्ञक होता है । इस व्णनका प्रयोजन उस मह्दीनेके फलादेशसे सम््रम्थ रखता है ।
इस मन्थमे ऋतु, भयन, मास, पक्ष, नचषत्र भर तिथि सम्बन्धी चर्चाएँ भी उपलब्ध हैं ।
समवायाजमें नक्षत्रोंकी ताराएँ , उनके दिशाद्ार आादिका वर्णन है । कहा गया है--'“कत्ति-
आइया सत्त णक््खत्ता पुरबदारिभा । महाइया सत्तणक्खत्ता दाहिण दार्आ । अणुराद्ाइआ सत्त
णक्खत्ता भवदारिया | घणिट्टाइआ सत्तगक्खत्ता उत्तरदारिआ ।”--सं० अं० सं० ७ सू० ५
भर्थात् कृत्तिका, रोहिणी, सगशिरा, लाद्ी, पुनवसु, पुष्य मोर भाश्लेपा ये सात नत्र पूर्व द्वार,
मघा, पूर्वाफाह्गुनी , उत्तराफादगुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशास्त्रा दक्षिण द्वार; अनुराधा, उयेष्ठा, मूल
पूर्वाषाढ़ा, उत्तरापाढद़ा, भभिजित् भौर श्रवण ये सात नक्षत्र पश्चिम द्वार एवं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्र-
पद, उत्तराभाद्रपद्, रेवती, अजश्विनी भौर भरणी ये सात नक्षत्र, उत्तर द्वार वाछे हैं । समवायाज १1६;
रा, शेर, छा३, 1६, भर ६७ में भाई हुई ज्योतिष चर्चा भी महत्वपूर्ण हैं ।
ठाणाज्में चन्द्रमाके साथ स्पशयोग करनेवाले नक्न्नोंका कथन किया है । बताया गया हे --
“प्कूत्तिका, रोहिणी, पुनवंसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा भर ज्येष्टा ये भाठ नक्षत्र स्पशे योग करने-
वाले हैं ।'' इस योगका फल तिथिके .अनुसार बताया गया है । इसी प्रकार नकग्रोंकी अन्य संज्ञाएँ
तथा उत्तर, पश्चिम, दक्षिण भौर पूर्व दिशाकी ओरसे चन्द्रमाके साथ योग करनेवाले नक्तब्रोके नाम और
उनके फू घिस्तार पूर्वक बतलायें गये हैं । अंग निमित्तज्ञानकी चर्चाएँ भी लागम अ्न्थोंमिं मिलती
हैं । गणित भर फकित उ्योतिफ्की भनेक मौखिक बातोंका संग्रह आागम अ्रत्थोमिं है ।
फुटकर ज्योतिपचर्चाकें अलावा सूयंप्रशप्ति, चन्दप्रशप्ति, उयोतिषकरण्डक, अंगविज्ञा, गणिबिउजा,
मण्डरप्रवेश, गणितसारसंग्रह, गणितसूत्र, गणितशास्त्र, जोइसार, पश्चाज़्नयन विधि, इष्चतिथि सारणी,
१--ता कहूँते कुला उवबुला कुलावकुला भह्ितिति बदेज्जा । तत्थ खल॒ इमा बारसकुछा बारस
उपकुला चत्तारिं कुलावकुला पण्णता । बारसकुला त॑ जह्ा--धघरणिट्टा चु.लं, उत्तराभददुवयाकुरल, भस्सिणी
कुत, कत्तियाकुलं, मिगसिर कुल, पुस्साकुलं, महावुलं, उत्ततपरगुणीकुलं, चित्ताकुलं, विसाहाकुलं, मूलोकुलं,
उत्ततसाणकुछं | बारस उबकुला पण्णता त॑ जहा सब उवकुलं; पुव्बभददबया उबकुलें रेवति उबकुलं,
भरणि उवकुलं, राहिणी उवकुलं, पुणवसु उचकुलें, असलेसा उबकुलं, पुव्वफग्युणी उवकुलं, इत्थो उबकुलं,
साति उबकुलं, जेट्ठा उवकुलं, पुव्वासादा उवकुलं || चत्तारि कुलावकुलं पण्णत्ता त॑ जद्दा--अभिनिति कुछाव-
सतभिसया कुलावकुलं, कूल, मद्दाकुलावकुलं अणुगढ़ा कुलावकुलं ||--पु० का० १०, 9,
२--अट्ठ नक्खत्तार्ण चेदेण स््धि पमडुं जोग॑ जोएइ तं० कतिया, रोहिणी, पुणवस्सु, महा, चित्ति,
विसाद्दा, अणुराहा जिट्टा--ठा० ८, सू १००
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