सारनाथ का इतिहास | Sarnath Ka Itihas

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Sarnath Ka Itihas by वृन्दावन भट्टाचार्य - Vrindavan Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर &# १ सारनाधका डातडाय 1 प्रथम अध्याय सारनाथके घथिनररणकी झावश्यकता । नकेसीडनद्डटुरेदड वन भा टमिर्नाथ चौद्धोंका एक अति पथित्र स्थान है। यो सकि अूक चर्म आधे जगतूमें फैठा हुआ है। उसीकी जन्मभमि सारनाथ है । चद्ध भगवानने यहों उस पिन -और श्र छ घम्स॑के प्रचारका आरम्भ किया था इसी कारण चोद्धोंके चार (१) मद्दास्थानोंमें इसे भी स्थान प्राप्त है । एक समय वह था जच इसी सारनाथ अथवा इसिपतन मसिंगदाय सें कई सखहस्त्र भिश्चु जोर मिश्ठुकियां एकत्र होती थीं (सहदस्ों घर्मशील चोद्ध इस सद्घम्संको अहणकर चिर्द्वा- णपथ पर चलते थे ) । एक समय यही सारनाथ भारतवपके सचप्रधान स्थानोंमें बिना जाता था । चीन जापान जावा कै. भ् ष्् ही. भरे 20 1 दी लि न य (९) जौरतीन मद्दा तोथो के नाम दैं।--फरपपिलयस्तु नेपालफी तरस जुहगया ( गयवास्हे निकट ) श्योर कुश्थिनिगर था छंशिनारा जिसे कसिया यदसे दै गोरखपुर निलेसं है




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