आर्थिक विचारों का इतिहास | Aarthik Vicharo Ka Itihas

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Aarthik Vicharo Ka Itihas by एम. सी. वैश्य - M. C. Vaishya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अधिक विचारों के इतिहास की विपय सामग्री तथा महत्व छः का विस्तृत रुप में ज्ञान प्राप्त हो जाता है । इस रोहि के द्वारा झाधिक विचारों को अध्ययन करने से यह भली प्रकार ज्ञात हो जाता कि विशिक्न वर्तमान भाधिक विचार तथा संस्थायें झ्रनेक प्राचीन लेयकों के श्राथिक दिचारों के दुघल सूपों वी नींव पर झाघारित हैं । आधिक विचारों के श्रध्ययन की इस रीति से यह भी ज्ञाप्त होता है कि भाथिक विचारों का विकास समय के साथ मनिरन्तरता के सिद्धान्त (एसफ़लंफंट ० (०्तपंगघाए) के नियमानुसार होता रहा है । यद्यपि _ प्राचीन तथा... घवीन झाधिक विचारवारायें एक दुसरे से सिम है यरन्तू निशिवितता के साथ यह बताना विन है कि एक विचारधारा केव तथा! कही समाप्त तथा दूरी कब तथा बदढिन है कि एक विचारघारा कव तथा! कहाँ समाप्त तथा दूरी कब तथा कहाँ आरम्भ होती हैं । लि मडिकिकि:मेशय दूसरे, झ्राथिक विचारों का श्रव्ययन विचारानुसार रीति (186००४१८०१ रक्षा0०3) के द्वारा भी किया जा सकता है। इस रीति के भन्तमंत ग्राधिक धारणाओं (छ८०ए0पांद दसव्टकड) के वेकास का खब्दवन कैसा नाला है। के दिकास का श्रध्ययन किया जाता है। उदाहराधथ मुल्य, लेगान, वेतन तथा ब्याज इत्यादि ग्राधिक घारणाश्रों के सेंद्धान्तिक विकास का प्राचीत समय से लेवर अब तक श्रच्ययन इस रीति को सहायता से किया जाता है । इस रीति में नाप शव्ययन को विशेय सम्प्रदाय तथा लेखक की श्रपेकषा श्रघिक महत्व डिया. जाता दिया जाता है । इस रीति का मुख्य ताभ यह है कि पिसी भी विशेष घारणा कं भ्रविरल विकास का मीन प्राप्त हो जाता हो इस रोलि के द्वासे म्रव्ययन करने से लेखकी के विचारों के सम्बन्ध में पूरा ज्ञान प्राप्त होना कठिन है क्योकि केवल उन्ही लेखकों की व्यारया वी जाती है जिन्होंने विशेष श्राधिक धारणा के विकास में योगदान दिया. होता है । एटमण्ड बिठाकर ( एवेफ्ाणात्‌ इपरपएजॉप्टा ) ने घ्पनी पुस्तक ै फ़ाडध्जाफु 0 छट०णणण८ इतेल्न5 में इस रीति को श्पनाया है । ऑिक विचारी के श्रष्ययन की हीसुरी रीति के भ्नुसार अर्थशास्त्र तथा धाथिक विचार सामाजिक व र्थिक प्रगति के ही रुप हैं । प्राधिक प्रेरणाम्रो की अ्रनीत्मिवादी रूप में ब्यारया की जाती है तया विभिन्न झाधिक वर्मों के वीच साघनों तथा श्राय के व्तिरण पर निरन्तर लड़ाई होती बताई जाती है । उदाहरणाय रिकार्ड के विचारानुसार श्रमिकों के वेतन में केवल साहसियों के लाभ में कमी करके ही दृद्धि की जा सकती है । इस प्रकार श्रमिकों तथा साहप्ियों मे सदा राष्ट्रीय श्राय का भधिक ट्स्सा श्रप्त करने के लिये सर्प होता रहता है । यदि भूस्वामी को भी सम्मिलित किया जाते तो उत्पत्ति के सभी साधनों के स्वामियो--भूस्वामी, श्रमिक तथा पूजीषति- के बीच राष्ट्रीय राय का स्वयं प्रघिक भाग प्राप्त करने के 2. मार्शल ने इस सिंद्धा्त को श्रपनी भसिद्ध पुस्तक एसएलफटड ० छदण्णणण्पंट५ में बहुत अधिक महरंव दिया है । यह पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर लिखित *िंडघफाथ हर०घ हिडटां८ 5वा(एिका” से स्पष्ट है ।




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