राजस्थानी कहावत कोश | Rajasthani Kahawat Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजस्थानी कहावत कोश श्र झ9 शुद, श£. द्श् २. दे. घ् च्, द्दद्, घ्रड़ी-बड़ी में श्राडो झावे जिको ई श्राप को ॥ जो समय पर काम आये, वही श्रपना । अरणकमाऊ बीरो, नित उठ मांगे सीरो 1 . भाई साहब कमायें-कजायें कुछ नहीं और खाने के लिए नित्य हलवे की मोग करें । असर श्र झांधो बराबर होवे । अन्धा और श्रनजान एक समान । श्रणजार तो भाठे के समान होवे 1 अनजान व्यक्ति पत्थर के वराबर होता है। श्रनजान को कोई लिहाज या अपनत्व नहीं होता । रू० श्रसैधो मिनख भाठ वरोबर । श्ररणदोखो ने दोख, वींकी गति न मोख । निरपराध पर दोष मढने वाले की गति-मुक्ति नहीं होती । श्रसाधीज कै टाबर श्रर नादीदी के खसम ने बतदायड़ो ही बुरो । जिसे जरा भी घैय॑ या विश्वास न हो, ऐसी स्त्री के वालक एवं नदीदी स्त्री के पति से बात करना भी बुरा । रू० अराधीज के टाबर मै खिलायेड़ो ही बुरो । श्रसापढ जाट पढ़े बरोबर पढचयों जाट खुदा बरोबर । श्रणपढचयोड़ो दायमो, पढचो पढायो गोड़ । बिना पढ़ा हुआ दाहिमा (ब्राह्मण) भी पढ़े हुए गौड़ के बराबर । रू० भरियों दूभै है'क दायमो ? ः ्रसाभरियां घोड़ां चढ़े, भरिणयां मांगे भीख । अनपढ़ तो घोड़ों पर चढ़ते हैं एवं पड़े लिखे भीख मांगते हैं । मध्ययुग में शक्ति को वरिष्ठता प्राप्त थी । प्रायः राजा व जागीरदौार पढ़े लिखे नहीं होते थे, लेकिन फिर भी उनके यहां घोड़ों के ठाट रहते थे एवं कवि श्रौर पण्डित उनके सामने हाथ पसारते थे । श्ररण मांगी तो दूध बरोबर, सांगी मिले सो पारी । वा मिच्छा है रगत बरोबर, जॉं सें टारणा टारणी ॥। बिना मांगे जो भिक्षा मिले वह दूध के समान (साट्विक) , जो मांगने से मिले चह पानी के समान श्रौर जो भिक्षा खींच तान करके प्राप्त की जाए वह रक्त के तुल्य होती है । अरमांग्या मोती मिले, मांगी मिले न भीख । बिन मांगे तो मोती भी मिल जाते हैं श्रौर मांगने पर भीख भी नहीं मिलती ।




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