महाराजा रणजीत सिंह | Maharana Ranjeet Singh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Maharana Ranjeet Singh by अ. अ. अनन्त - A. A. Anant

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अ. अ. अनन्त - A. A. Anant

Add Infomation AboutA. A. Anant

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उनका आरचरण ठीक नहीं था । कुछ भी हो रणजीत सिह अपनी सास “'सदाकु मार के चंगुल से निकलना चाहते थे । सदाक मार ने जान वूककर रणजीतसिंह को शिक्षा-दीक्षा से अलग रखा था और उनकी प्रद्त्ति श्रनेक प्रकार की गन्दी आदतों की ओर लगाती जाती थी । उसका मतलब था कि रणजीत सिंह नीच क्यों में डूब कर प्रधान सरदार के पद के लायक न रह जायें । किन्तु उनमें ऐसे विचारों का नाम-मात्र भी अंश न था । वे किसी भी व्यसन में नहीं पढ़े । सू्वत्ंब्नता ब्लू ओर इसी बीच में श्ञाहजमा काबुल की राजगद्दी पर आसीन हुआ श्र वह अपने पितामह अदमदशाह के विजय किए हुए पंजाब देश के प्रदेशों को अपने राज्य के अन्तरगत लाने का विचार करने लगा | सन्‌ १७8४ ई० से १७६८ ई० के बीच में उसने पंजाब पर लगातार आ्राक्रमणश किये । सिक्खों में उसका सामना करने की सामध्य न थी । पहले श्राक्रमण में चह केवल फेलम तक पहुंचा ओर पुन! लौट गया; किन्तु दूसरे आ्राक्रमण में उसे अधिकतर सफलता प्राप्त हुई, और फिर सच १७४७ ई० में पह बिना रोक-टोक के लाहौर का. सालिक बन बेठा । किन्तु




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now