प्रवंचना | Pravanchana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.29 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द प्रबंचना
“तो श्राप ही, जुरा पीछे हुट जाइये । एक चपत मुफ्त में लगा सो
है, श्रीर पया चाहते हूं ?” है
प्रच्छा देखो 1” उस भ्रादमी ने कहा, “एक रुपया से लो श्रौर थोड़ी
हर चले जान्नो ।”
हम भीव नहीं सेते । । जय श्राप नरमी से कहते हैं तो दम पीछे हद
जाएंगे ।”
लड़के दूसरे घास फे मेदान में घते गये । जब खेलते-पेलते थफ गये
तो वेठफर बातें फरने लगे । एक सड़फे ने फटा था, उस मेम ने मारा था
तो एक उंडा तो टिका देना था दे
“मेरा हाय उठा तो था पर श्रादमी ध्ोरतों पर हाथ नहीं उठाते ।”
'पुम श्रादमी हो पया ? यह कह सब हंसने लगे, “तुम्हारी दाढ़ी-
मूंछ कहाँ है?”
प्रेम प्रादमी शब्द फी यह विवेचुना सुन लज्जा से लाल हो गया ।
वे घ्रभी इस प्रकार फी यातें फर हो रहे ये फिं घही श्रौरत श्रोर दो घच्चे
कागस में कुछ लपेटा हुआ लेकर इनकी ध्ोर श्राते हुए दिखाई दिये ।
लड़के भयभीत होफर भागना चाहते थे कि प्रेम ने फहा, “वहादुर श्राद-
मियो ! श्र भागते क्यों हो ? येठे रहो घोर देसी चहू पपा फहतो है ।”
वह श्रोरत श्राई श्रौर फागस में लपेटा हुमा सामान सब लड़कों के
यौच रख चोली, “ये तुम लोगों के खाने के लिये है ।”
“हमको पणयों दे रहे हो ?” प्रेम ने पुद्या, “हमको यह पदों लेना
चाहिये ?” थ
“तुम श्रच्छे लड़के हो, इसलिये । देखो प्रेमनाय ! में तुम से चद्तत
प्रसन्न हूँ । तुम श्ौरतों का मान फरते हो न ? इसलिये ।”
सब लड़के ललचाई झराँखों से मिठाई ध्रौर फलों को ध्ोर देख रहे थे
ममनाथ ने झपना नाम पुनः सुन भ्रचर्ने से पूछा, “ग्राप मेरा नाम फंसे
जानती हूं ? मेने तो बताया नहीं ।”
“मं तुम्हारे वाप को जानती हूं । इसलिये मे शोक है कि
न
मेने
सब तरफ युभके हे
दृष्टि आता अँघेरा ।
निशि-दिन रहता है
खिन्न दी चित्त मेरा ।
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