हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास | Hindi Sahitya Ka Brihat Itihas Bhag-17 Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रर ) नागरी मुद्रण के संजोलफ श्री प्रो० मोतीसिंद तथा व्यवस्पापफ श्री मइतायराय ली ने बडे परिधम श्रौर सावधानी से इस प्रंय की ययाशीघ्र छुपाई पराइ। इन सभी सपनर्नों के प्रति श्रामार प्रकट परना इमारा पर्तघ्य टै । सावधानी के दोते हुए मी मुद्रय की कु श्रश्दियाँ म्ंथ में रद यई दें । बुद्ध समा की वतनी के कारेख शब्दों के श्रपने रुप हैं। इसके लिये उदार पाटकगण कृपया क्षमा परेंगे | टिंदी जगत्‌ में श्रपने ढंग पा यह प्रयम प्रयास है । इसके लिये परंपरा शाख्र श्रौर पिपुल साधन श्रपेक्षित था घो इमें सइज उपलब्ध नहीं । श्रपनी सीमाध्ों को सबसे शधिफ इम लानते हैं। इर प्रयत्न में फई चुटियाँ श्रीर भूलें रद्द गई दूं । इस विशरास से प्रस्तुत मार्ग पर चरण रखा गया है फि सादित्य- सेवियों पी साधना से यदद उत्तरोत्तर प्रशस्त होगा श्रौर हिंदी के मावी उत्याम के लिये केयल संकेत फा कार्य फरेगा | राजवली पांडेय काशी दिंदू विर्वविद्यालय वाराणसी विजया दशमी सं० २०१४ वि०




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