मातृ - कला | Matra-kala

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Matra-kala by डॉ. मुकुंद स्वरुप वर्मा - Dr Mukund Swarup Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( र१ ) किन्तु निधन व्यक्तियों को ये सब 'छापदायें केलनी पढ़ती हैं । नम भोजन का श्रबन्ध हो सकता है, न दवा का । साता और बच्चे दोनों की देख-रेख असंभव सी हो जाती है। रहने के लिये केवल एक या दो कमरे होते हैं । उन्हों में यहस्थी का सारा काम होता है । प्रसव भी उन्दीं में से एक कमरे में होता है। फिर स्वच्छता और शुद्धि बहाँ कितनी रह सकती है ? ऐसी दूशा में सब भाग्य ही पर छोड़ना होता है, । यदि शिशु र माता दोनों बच गये तो भाग्य- वशात्‌ ! नददीं झसामयिक 'अन्त तो है ही । योरुप के कई देशों में परिवार की 'छझाय तथा परिवार की वातल्त- सस्यु के कारणों का झन्वेषण किया गया है और पाया गया है कि दोनों में विशेष संवन्ध है। जमंनी के एरफट ( ि०र ) लगर में डाक्टर कल्क ने यद्द परिणाम निकाला है कि मजदूरों में १००० बच्चों में से प्रथम वर्ष में ४०४ की सृत्यु हुई । मध्यम श्रेणी में १७३ की और उच्च-श्रेणी के लोगों में केवल ८६ की खत्यु हुई । इन ंकों के झरचुसार उत्तम श्रेणी की 'झपेक्षा मजदूर के बच्चों की छः शुनी छाधिक सृत्यु हुई। इंगलेंड के वरमिंघम में डाक्टर राबटेंसन के प्राप्त झँकों के अजुसार धनवान श्रेणी वाले लोगों में १००० सें से केवल ५० की श्ृत्यु हुई । किन्तु निधन व्यक्तियों में २०० बच्चे मरे छन्य देशों में भी यहों पाया जाता है । निधन तथा मजदूर श्रेणी में माता को पारिवारिक झाय बढ़ाने के लिये परिश्रम तथा मजदूरी करनी पढ़ती है। योरुप में छानेक स्त्रियाँ दफ्तरों में कास करती हें । बहुत सी मिल और फैक्टरियों सें काम 'करती हैं । 'छानुसंधान से जो 'झंक मप्त किये गये हैं उनसे यह पता चलता है कि जो स्त्रियाँ प्रसव से कम से कम एक मास पूर्व कास करना छोड़ देती हैं 'और विश्राम लेती हैं उनकी संतान सबल मा० क०--र९ हर




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