देसी रियासतों में स्वाधीनता संग्राम का इतिहास | Deshi Riyasato Me Swadhinata Sagram Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.08 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देसी रियासतों में स्वाधीनता संग्राम का इतिहास
जिम्मेदारियां आ पढ़ीं जिनको उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया। यद्यपि रियासती
जनता को कांग्रेस के तीन क्णंधारों--सहात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार
परेल--से हमेशा सलाह-मशविरे मिलते रहते थे, फिर भी आगे कदम बढ़ाने के लिए
उसे अपने रियासती नेताओं की ओर हो ताकना पड़ता था।
आइए, अब इस प्रइन पर विलोम रूप में विचार करें। यदि रियासती जनता
के नेताओं ने अपने-अपने प्रदेशों में लोकमत संगठित न किया होता तो देश पर क्या
बीतती ? देश किघर जाता ? उस दशा में, यदि जोधपुर की जनता ने, किन लोगों से
.. उसका भाईचारा या लगाव है, यह स्पष्ट ढंग से प्रकट न कर दिया होता, तो उसके
दिवंगत महाराजा-जैसे दबंग आदसी को पाकिस्तान में मिलने या स्वतंत्रता की
घोषणा करने से कौन रोक सकता था? भारत के स्वाघीन होने से दो महीने पहले
तक ट्रावनकोर के दीवान का रुझान स्वतंत्रता की ओर बना रहा, और जूनागढ़ के
नवाब मे तो अपनी रियासत पाकिस्तान सें मिलाने की घोषणा कर दी थी । यदि उनकी
जनता संगठित रूप से खड़े होकर आवाज उठाना न जानती तो दीवान जी और नवाब
साहब की बं दर-घुड़कियों से रियासतों का नक्शा ही बदल गया होता । आज रियासतों
के विलय और राष्ट्र के दुसरे भागों के साथ एकजीव होने को कहानी “दुनिया के
इतिहास की सबसे बड़ी रक्तहीन क्रान्ति” सानी जा रही है; यदि जनता ने जी-जान
की बाजी न लगा दी होती और आजादी की मशाल उनके तपे-तपाये नेताओं के
मजबूत हाथों में न होती तो उसका स्वरूप ही दूसरा होता ।
इसी जनता और उसके संघर्ष की कहानी इस पुस्तक में मिलेगी। कितने ही
इतिहासकारों ने भारत की आजादी की कहानी लिखी है, कितु उन्होंने रियासतों की
कहानी को मूल-गाथा में क्षेपफ से अधिक स्थान नहीं दिया है। आशा है ही
रचना उन सराहनीय ग्रंथों के पूरक रूप में ग्रहण की जाएगी; जिनके लेखक हैं डा०
ताराचंद और डा० मजूसदार जैसे कलम के धनी ।
रियासतों में आजादी के सिंपाहियों को निष्ठुर दमन-चक्र का शिकार होना पड़ा।
इसलिए रिधासतों की आजादी की कहानी पर अलग से इतिहास लिखने के लिए
प्रचुर बहुमूल्य सामग्री मौजूद है। फिर भी यदि प्रस्तुत पुस्तक को समूच भारत की
आजादी की कहानी के साथ-साथ पढ़ने की कोदिश की जाय तो हमें आशा ही नहीं
बल्कि विश्वास भी है कि पाठक ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय जनता के गण्यमान्य
प्रतिनिधियों को सत्ता सौंपे जाने से पहले इस उपमहाद्वीप में क्या-कुछ हुआ; उसका
अधिक विश, स्पष्ट चित्र पा सकेंगे ।
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