पूर्व एशिया का आधुनिक इतिहास खंड 2 | Purv Asia Ka Adhunik Itihas Khand 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ पुव एशिया का आधुनिक. इतिहास इतने अधिक सदस्यों के होते हुए भी इनका 'राजनी तिक प्रभाव बहुत कम था । इसका कारण एक तो यह था कि ये समित्तियाँ पुरानी सामंती विचारघारा से प्रभावित थीं और दूसरा यह था कि दासन-तन्त्र के प्रति सम्मान का भाव पुर्वेवतू वने रहने से वे असंतोष व्यक्त नहीं कर पाती थीं । किन्तु इन समितियों तथा श्रम संगठनों के माध्यम से जितना असंतोष व्यक्त होने लगा था, उससे आनेवाले सामाजिक संकट के संकेत स्पष्टतया मिलने लगे थे 1 जापान में नयी शक्तियाँ उत्पन्न हो रही थीं ! (२) नेतृत्व सेना के हाथ में इस असंतोष का लाभ एक पुरानी शक्ति ने उठाया । वह पुरानी शक्ति थल- सेना और कुछ भंश तक नौसेना थी 1-इन दोनों सेनाओं में एक लम्बे अर्से से क्रमदा चोशु तथा संत्सुमा कुलों का प्रभाव था; विश्षेष कर चोशु कुछ का अत्यधिक प्रभाव था । उन कुछों का नियंत्रण उच्च निदेशात्मक पदों पर एकाधिकार कर लेने के कारण था ।। किन्तु प्रथम विश्वयुद्ध के पदचाव एक नया तत्त्व उभरकर शासन-तन्त्र में अपने लिए प्रभावद्याली स्थान बनाने लगा । जैसे-जैसे मृत्यु या त्यागपत्र के कारण पुराने नेताओं के स्थान रिक्त होने लगे, बेसे-वैसे उनका स्थान तब .तक दवे हुए तत्त्वों ने लेना शुरू किया । ये तत्त्व मूलतः कम प्रभावकाली कुलों के थे । उनका सम्बन्ध जापानी समाज में अपेक्षाकृत छोटे भ्रु-स्वासियों और निम्न मध्यवर्ग से था । १९२० भौर १९९२७ के बीच ३० प्रतिशत नये अधिकारी छोटे भु-स्वामियों, घनी किसानों तथा शहरी क्षेत्रों के मध्यव्ग के परिवारों से आये थे और यह्द प्रतिद्यत लगातार बढ़ता गया । ये जवान अधिकारी अपनी सामा जिक पुष्ठभुमि के कारण पूुँजीवादी एकाधिकार का विरोध करने लगे । इसके साथ ही अपने व्यक्तिगत हितों के कारण से वे सेना में पुराने रूढ़िवादी कुलों के जनरलों को चुनौती देने लगे | इन जनरलों के स्थान पर पहले से 'ही वे लोग रखे जा रहे थे जो नये दृष्टिकोण से सहाचुसुति रखते थे । १९३० तक मध्यसमूह के ये अधिकारी, जिनमें जनरल म्युठो मराकी, मजाकी तथा हंयासी सस्मिलित थे, सर्वोच्च युद्ध-परिपद्‌ का नियंत्रण प्राप्त करने लगे । ” सामाजिक प्ृष्ठभुमि का प्रभाव इस कारण भी पुष्ट तथा रुढ़ होता गया कि अनिवाय॑ भर्ती की. प्रणाली प्रचलित होने से उन वर्गों के युवक भी थल-सेना तथा नौ-सेमा में भर्ती होने लगे जो आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक पीड़ित थे । अतः प्रचार के लिए अनुकूल अवसर देखकर उनके समक्ष सरकार भौर व्यापारियों के गठवबंबघन की कड़ी आलोचना की जाने लगी तथा इस संबंध के कारण राजनीति में व्याप्त अष्टा- चार पर वल दिया जाने लगा । इस अकार विभिन्‍न दलों तथा उनसे सम्बद्ध छोगों के प्रति जो थोड़ा-बहुत सम्मान: दोप था वह भी कम होने लगा ।




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