बुद्धकालीन समाज और धर्म | Buddhkaleen Samaj Aur Dharm
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.63 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भभमिका +
निकाय, सयुत्त-निकाय, अगृत्तर-निकाय तया सुद्दक-निकाय । इन निकायों मे
भारतीय इतिहास की अत्यन्त उपयोगी सामग्री उपलब्ध होती है । अपने प्रवचनों
में बुद्ध ने ऐसे दृप्टात दिये है जो तत्कालीन इतिहास की बहुमूल्य सामग्री है)
प्रसगवध उस समय की कई राजनतिक घटनाओं के भी उस्लेख किये गये है ।
लत सुत्त-पिंटक से तत्कालीन भारत फी राजनतिक तथा सास्कृतिक जोवन-
सम्बन्धी अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं ।
किसी भी युग के सास्कृतिक जीवन के विवरण के लिए कथा-साहित्य के
महत्त्व की उपेला कही की जा सकती । कहानियाँ समाज का प्रतिविस्व होती
हूँ । इस दृष्टिकोण से वुद्ध-कालीन समाज का विचरण प्रस्तुत्त करने के लिए जातकों
की बड़ी उपयोगिता है । सुदक-निकाय में समाधिप्ट ५४७ कहानियों का सग्रह
जातक है। जातक की कहानियाँ बुद्ध-कालीन समाज मे प्रचलित थी । बौद्ध
भिक्षुओं ने इन्हें भगवान् वुद्ध के पूर्व-जन्मो की घटनाओों से सबद्ध फर अपने
उपदेशों के प्रचार-योग्य घना लिया । कुछ कट्टानियाँ उनकी अपनी कल्पना की
उपज भी होगी । ये कहानियाँ तत्कालीन समाज के विधिघ विपयो का प्रसग-
चयय उल्लेख देने के कारण इतिहासकार के लिए बहुमूल्य सामग्री प्रदान
करती हूँ ।
जहां तक जातकों के रचनाकाल का प्रय्न है, बुद्ध-कालीन समाज का
विवरण प्राप्त होने के कारण इन्हें इसी काल का मानना तर्कस गत प्रतीत होता
है। कई जातकों को भारहुत्त तथा साची की वेदिकाओ तथा तोरणों मे उत्कीर्ण
किया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि वे इन कलाकृतियों के निर्माण के पूर्व
ही समाज मे प्रचलित थे । रिचार्ड फिक, रीस डेविड्स तथा दूलर भादि प्राच्य-
विदो के मत में जातक तीसरी शताब्दी ई० पू० के जन-जीवन को प्रतिविस्वित
करते है। यह तथ्य कदापि उपेक्षणीय नही है कि जातकों में तक्षद्विला का
उल्लेख एक ख्यातिप्राप्त विद्या-केन्द्र के रूप में मिलता हं। यद्यपि नन्द तथा
मौय॑ शासकों के समय पाटलिंपुन्न मगघ साम्राज्य की राजघानी तक वन गया
था, फिर भी उसका उल्लेख जातकों मे पाटलिगाम मात्र के रूप में मिलता है ।
दूसरी ओर राजगृह का उल्लेख एक प्रमुख नगर के रूप में मिलता है । इन
जातकों मे वैक्षाली का वैभव तथा मिथिला की गरिमा भी न्यून नही है। अत
इन कहानियों मे उस युग का वर्णन है जब पाटलिपुत्र को एक प्रमुख नगर का
गौरव प्राप्त नहीं हुआ था । बिविसार, प्रसेनजित तथा अजातदात्र के उल्लेख
हैं, पर नन्दो तथा मौयों के नहीं । इस तरह जातकों मे ऐसे कई प्रमाण हैं
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