भारतीय इतिहास की मूल धाराएँ | Bhartiya Itihas Ki Mool Dharayen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32.36 MB
कुल पष्ठ :
605
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है। इस मरम्थल के पश्चिमी भाग में श्ररावली पवेत श्रेणियाँ हैं। महस्थल श्रौर
भ्ररावली पंत श्र रियों के कारण यह एक सुरक्षित प्रदेश बन गया है। इसकी
सुरक्षित स्थिति के कारण राजस्थान के इस भाग ने भारतीय इतिहास को बहुत
प्रभावित किया है । पंजाब तथा सित्ध की द्ोर से म्राते वाले श्राक्रमणकारियों को
रोकने में तथा इली देश के स्थानीय राजागों को, जो झ्राक्रमणुकारियों का सामना न
कर सके, उन्हें श्राधय देने श्रौर उनके राज्य स्थापित करने के लिए सुरक्षित स्थान
उपलब्ध कराने में राजस्थान के मरुस्थलीय एवं पर्वतीय भाग ने महृत्वपुर्ण योगदान
दिया है । यदि श्राप प्रत्चीन भारत के इतिहास का विश्लेषण करें, तो श्रापकों लगेगा
कि हुणों से लेकर मुगल श्राक्रणकारियों तक का सामना न कर सकने वाले भारदीय
शासकों ने इसी प्रदेश में शरण ली थी श्रौर इसी प्रदेश के शासकों ने बाह्य श्राक्रमण+
कारियों से दृढ़तापुवंक लोड्ा लेकर भारतीय स्वतन््रताक प्रमुख दुग यही राजस्थान का
भाग रहा था । इतना ही नहीं, विदेशी श्राधिपत्य-काल में उत्तर भारत की सभ्यता
भौर संस्कृति की सुरक्षा का उत्तरदायित्व भी इसी प्रदेश ने उठाया है श्ौर इप्ी भाग
में उनका स्वतन्त्र विकास भी होता रहा है ।
3. दक्षिही बार तथा पूर्वों एवं पश्चिमी घाद--यदि झाप भारत के
भौगोलिक मानचित्र को ध्यान से देखें, तो उत्तरी भारत के मेदानों के दक्षिण में
झापकों विन्थ्याचल एवं सतपुड़ा की पवेत श्रेणियाँ नजर श्रायेंगी शरीर इन पवत
श्र शियों के द'क्षणी भाग से लेकर सुदूर दक्षिण तक पठारी प्रदेश दिखाई देगा ।
उत्तर दिशा में विन्ध्याचल श्ौर बाकी तीनों तरफ समुद्र से घिरा दक्षिणी भारत का
यह प्रदेश भारत का दक्षिणी पठार कहलाता हैं । इस पठारी भाग के पुर तथा पश्चिम
में दोनों तरफ समुद्री किनारों से कुछ भ्रन्दर की श्रोर पर्वत श्रेणियाँ हैं; जिन्हें पूर्वी
एवं पश्चिमी घाट कहा जाता हैं । पूर्वी घाट को पंत श्रणियाँ कुछ नोची भोर
पश्चिमी घाट की पव॑तत श्र णियाँ ऊंची हैं । भारत के इस दक्षिणी पठार के भाग में
कई नदियाँ बहती हैं । इनमें नमंदा, ताप्ती, महानदी, गोशवरी, कृष्णा, कावेरी तथा
तुगभद्रा प्रसिद्ध हैं । इनमें से नमंदा श्रौर ताप्ती, जो पुर्वे से पश्चिम को ग्रोर बहती हैं,
को छोड़कर बाकी नदियाँ पश्चिम से पुर्व को आर बहती हैं ।
दक्षिण भारत की भौगोलिक स्थिति ने भी भारतीय इतिहास पर पर्याप्त
प्रभाव डाला है । इस भाग की अधिकांश भूसि पठारी एवं पवंतीय है श्र श्रनुपजाऊ
है । ऐसी स्थिति में इस प्रदेश के निवाहियों को अपनी जी विका कमाने के लिए हमेशा
कठिन परिश्रम करना पड़ा है । परिशामस्वरुप उनमें कष्ट सहन करने की श्रादत
तथा वीरता, साहु, त्याग एवं बलिदान की भावना का विकास हो सका है। मध्य
युग में शिवाजो श्रौर मराठ मुगलों की सेना से सफनतापुर्वक लोहा ले सके, इसका
मुख्य कारण इस भाग की भौगोलिक स्थिति ही है । महाराष्ट्र के पहाड़ी इलाकों में
लुक-छिपकर मराठों ने मैदानी भाग में लड़ने की श्रभ्यस्त मुगल सेना को छापामार
युद्ध नौति श्रपनाकर सफल नहीं होने दिया; इस बात को इतिहास के सभी विद्यार्थी
जानते हैं । इसी तरह म्रग्रेजों को भी इस भाग की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों
|
User Reviews
No Reviews | Add Yours...