भक्त चरितावली भाग 1 | Bhakt Charitawali Bhag 1

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Bhakt Charitawali Bhag 1  by लल्लीप्रसाद पाण्डेय - Lalli Prasad Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद भक्त-चरितावल्ी 1 प्रथम प्रशान्त मूर्ति देखते ही वेदान्त-वागीश बड़े सुखी हुए। उन्होंने ऑरतुत के मस्तक पर हाथ रखकर अआशीर्वाद दिया श्रार शिष्य रूपमें उन्हें ग्रहण कर लिया। पाठ का श्रारम्भ करने से पूव छात्र की बुद्धि की जाँच करने के लिए वेदान्तवागीशजी उनके साथ शाखालाचना में प्रवृत्त हुए । इस झ्राल्लोचना में श्रद्औ॑त की प्रखर बुद्धि देखकर वे अत्यन्त सुखी हुए । वेदान्तवागीश ताड़ गये कि यह छात्र भविष्यत्‌ में झसाधारण व्यक्ति होगा | इस समय शझ्राचार्य कुबेर की अवस्था नब्बे वर्ष के ल्रग- भग थी ।. घीरे-घीरे उनके परलेक-गमन का समय उपस्थित हुआ । लाभा देवी की श्रवस्था भी कुबेर श्ाचाये के भ्रन्ुरूप हो गई थी । भ्रब कुबेर पण्डित की श्रन्तिम घड़ी उपस्थित हुई। देहान्त के समय उन्होंने पुत्र को घर बुलवाकर कह्दा-- जब हमारा देहान्त हो जाय तब तुम गयाधघाम में जाकर _ पिण्ड-दान करना । पिता की श्राज्ञा का पालन करने के लिए श्रद्वेत श्राचाय यथासमय गयाधाम को गये श्रार वहाँ गदाघर के चरश- कमलों में स्वरग-गत पिठ्देव के उद्धार के लिए रन्होंने पिण्ड- दान किया | हर थ हा प्राकृतिक सोन्दय का दशन श्र अनेक तीर्थों का भ्रमण करना साधु लाग अपने जीवन का प्रधान कार्य समझा करते हैं। गयाघाम की यात्रा के पश्चात्‌ श्रद्वेत श्राचार्य रेखुमा ;




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