भाग्य - निर्माण | Bhagya Nirman
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.53 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ्. [ भाग्य-निमोण
में लेकर एक सम्पूर्ण ईमानदार मनुष्य की खोज करता रहा;
परन्तु उसका गवेषण ॒ निष्फल हुआ । एक दिन उसने बाज़ार में
खड़े होकर उच्च स्वर से कहा--'ऐ मनुष्यों मेरी बात सुनो”
बहुत से लोग उसकीं पुकार सुन कर वहाँ पर इकट्ठं हो गए ।
तब उसने घृणा के साथ कहां कि “तुम लोग क्यों इकट्ठं.
हुए हो, मैंने तो मनुष्यों को बुलाया था बौनों को नहीं ।”
समाचार-पत्रों में--में इश्तद्दारों में सूचनाओं में; हम प्रतिदिन
देखते हैं कि हर एक पेशे और व्यवसाय के लिए मनुष्य की
ब्ावश्यकता है. । उनमें लिखा रहता है कि ( फ़क्ा60 & 0 )
“एक मनुष्य की आवश्यकता है ।” परन्तु प्रश्न तो यह है कि
चह मनुष्य केसा हो । यदि २ हाथ २ पाँव २ कान २ नेत्र इत्यादिक
चिन्हों वाले एक पंचभूतात्मक स्वरूप की ही श्रावश्यकता है;
तब तो मनुष्य की किसी भी काय॑ के लिए, कोई कमी नहीं है ।
प्लेग; हैज़ा, इन्ल्फुएंज़ा, दुर्भिक्ष और संग्राम से लाखों प्राणी
मरघट पहुँच चुके तो भी मनुष्यों की कमी नहीं है । सनुष्य-
गणना बढ़ती ही जा रही है। तात्पय यह है कि जिस मनुष्य
की आवश्यकता है वद्द ऐसा होना चाहिए कि जो जन-समुदाय
में मिला हुआ भी झापने व्यक्तित्व को नहीं भरुलता दे--जो अपने
संतव्य को निर्भीकतापूवक प्रकट करता है--जो उस बात के
लिए भी “नहीं” कहते देर नहीं लगाता; जिसके लिए समस्त
संसार “हॉ” कह रहा दो। उस मनुष्य की आवश्यकता है
जो अपने एक विशेष मन्तव्य से प्रेरित होता हुआ भी अपने
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