भाग्य - निर्माण | Bhagya Nirman

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhagya Nirman by ठाकुर कल्याणसिंह -Thakur Kalyan Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ठाकुर कल्याणसिंह -Thakur Kalyan Singh

Add Infomation AboutThakur Kalyan Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
थ्. [ भाग्य-निमोण में लेकर एक सम्पूर्ण ईमानदार मनुष्य की खोज करता रहा; परन्तु उसका गवेषण ॒ निष्फल हुआ । एक दिन उसने बाज़ार में खड़े होकर उच्च स्वर से कहा--'ऐ मनुष्यों मेरी बात सुनो” बहुत से लोग उसकीं पुकार सुन कर वहाँ पर इकट्ठं हो गए । तब उसने घृणा के साथ कहां कि “तुम लोग क्यों इकट्ठं. हुए हो, मैंने तो मनुष्यों को बुलाया था बौनों को नहीं ।” समाचार-पत्रों में--में इश्तद्दारों में सूचनाओं में; हम प्रतिदिन देखते हैं कि हर एक पेशे और व्यवसाय के लिए मनुष्य की ब्ावश्यकता है. । उनमें लिखा रहता है कि ( फ़क्ा60 & 0 ) “एक मनुष्य की आवश्यकता है ।” परन्तु प्रश्न तो यह है कि चह मनुष्य केसा हो । यदि २ हाथ २ पाँव २ कान २ नेत्र इत्यादिक चिन्हों वाले एक पंचभूतात्मक स्वरूप की ही श्रावश्यकता है; तब तो मनुष्य की किसी भी काय॑ के लिए, कोई कमी नहीं है । प्लेग; हैज़ा, इन्ल्फुएंज़ा, दुर्भिक्ष और संग्राम से लाखों प्राणी मरघट पहुँच चुके तो भी मनुष्यों की कमी नहीं है । सनुष्य- गणना बढ़ती ही जा रही है। तात्पय यह है कि जिस मनुष्य की आवश्यकता है वद्द ऐसा होना चाहिए कि जो जन-समुदाय में मिला हुआ भी झापने व्यक्तित्व को नहीं भरुलता दे--जो अपने संतव्य को निर्भीकतापूवक प्रकट करता है--जो उस बात के लिए भी “नहीं” कहते देर नहीं लगाता; जिसके लिए समस्त संसार “हॉ” कह रहा दो। उस मनुष्य की आवश्यकता है जो अपने एक विशेष मन्तव्य से प्रेरित होता हुआ भी अपने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now