बृज की लोक कलाएं | Braj Ki Lok Kalaye

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Braj Ki Lok Kalaye by विमला वर्मा - Vimla Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उस मे चमकते असख्य तारे तथा पृथ्वी पर राधा-कृष्ण की रास लीला की रौनक ब्रज प्रदेश को स्वर्गलोक से भी सुन्दर स्वरूप प्रदान करती है। कार्तिक मास कार्तिक मास के आरम्भ होते ही सर्दी का आरम्भ हो जाता है। हल्की-हल्की ठडी ब्यार चलती है और मनप्राण मे नई स्फूर्ति भर देती है। राते ठडी तथा दिन मे सुहावनी गर्मी। ऐसे मे कुछ स्त्रियो के लोकप्रिय त्यौहार बृज प्रदेश मे मनाये जाते हे। करवा चोथ ओर अहोई अष्टमी सुहागिन स्त्रियो के त्यौहार है। करवा चौथ कृष्ण पक्ष की चौथ को मनाया जाता है इस की तैयारी करीब आठ दिन पूर्व से आरम्भ की जाती है. स्त्रियाँ व लडकियाँ दीवालो पर चौथ माता का चित्र बनाती है व इससे सबधित कथा सुनती है। कुछ लोग गोबर से दीवाल पोत कर चावल के पीठे से चित्र बनाती है और कुछ सफेद दीवाल पर विभिन्न रगे से। कथा सबधी सभी वस्तुओ जैसे करवा दोरानी जिठानी भाई स्वास्तिक तुलसी का लिखा चिडियॉं कमल का फूल छलनी से चांद दिखाते भाई और नसेनी पर चढकर देखती हुई बहन सूर्य और चन्द्रमा आदि। करवाचौथ के दिन चन्द्रमा देखने और उसको अर्ध्य चढ़ाने के बाद चौथ माता की विधिवत्‌ पूजा की जाती है और चौथ माता से कहानी सुनने के बाद अमर सुहाग की प्रार्थना की जाती है। बृज प्रदेश मे चतुर्वेदी व बनियो में यह त्यौहार बहुत ही कम लोकप्रिय है पर अन्य जातियों मनाती है। वास्तव मे इस क्षेत्र का लोकप्रिय त्योहार अहोई अष्टमी है जिसे अधिक लोग मनाते हैं। इसकी तैयारी भी करीब एक हफ्ते पहले से की जाती है। इस त्यौहार मे भी स्त्रियों अहोई देवी का चित्र गेरू से दीवाल पर बनाती हैं अगर घर मे एक सुहागिन पुत्रवती स्त्री अहोई अष्टमी की पूजा कर रही है तब एक मु ह वाली अहोई अष्टमी और अगर दो पुत्रव॒ती स्त्रियाँ त्यौहार को मना रही है तब दो मु ह वाली अहोई माता का चित्र बनाया जाता है। चित्र मे सात आदमी सात औरते सूर्य चन्द्रमा स्वास्तिक चौपड चौक मोर तोता स्याऊ व उसके बच्चे बनाये जाते है। दिनभर उपवास रखकर रात्रि मे तारे व चन्द्रमा देखकर द्रत खोला जाता है और पूजा करने के बाद खाना खाया जाता है। अहोई माता का चॉदी का चित्र बनवाकर धागे मे पिरोकर पहनने का भी रिवाज है. जिस मे प्रत्येक साल चॉदी के दो दाने बढा दिए जाते है। अहोई व करवाचौथ की कहानियाँ अनजाने मे (9) सच बोलने और जीव रक्षा का पाठ पढ़ा जाती है। मिल जुलकर रहना और बडो का सम्मान करना भी लोक कथाए सिखाती है। स्त्रियो के इन त्योहारों के बाद कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रियोदसी को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन यम की पूजा होती है और उसको खुझा रखने के लिए झाम को दीप जलाये जाते हैं तथा यमुना किनारे दीपदान किया जाता है। दूसरे दिन चौदस को कुछ लोग पटले पर घी से श्रीकृष्ण का चित्र बना कर पूजा करते है क्योकि इस दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। नये कपडे व बर्तन खरीदना इस दिन झुभ माना जाता है। घर बाहर गोशञाला आदिं की सफाई की जाती है ओर घरो दुकानों की भित्ति व भूमि अलकरणो से सजाया जाने लगता है। इस दिन को नरक चोदस के नाम से लोग जानते हैं। दीपावली अमावस्या को जगमग दीपो का त्यौहार मनाया जाता है श्रीराम इसी दिन लका विजय के बाद अयोध्या पहुचे थे। उन के वापस आने की खुशी मे अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर स्वागत किया था। इस दिन सभी जातियाँ घरों की सफाई करके भूमि व भित्ति अलकरणो से सजाते हैं भूमि अलकरण अधिकतर रगीन होते हैं पर भित्ति अलकरण गेरू/चावल के मीठे या विभिन्न रगो से बनाये जाते है। जिनमे जातिगत विभिन्नता होती है। इस दिन गणेशा-लक्ष्मी का पूजन मुख्य हैं। राम परिवार शिव परिवार व कृष्ण परिवार की मूर्तियाँ भी दीपावली पूजन मे सजाई और पूजी जाती है। दीवाली के भित्ति चित्रो को सौरती या सुराती कहते हैं। बाजारो की रौनक देखते ही बनती हैं। पटाखे खिलौने मिठाई सूखी मेवा और फलो से दुकाने भरी होती हैं। बच्चे नए-नए कपडो को पहन कर मन पसन्द खिलौने पकवान पटाखे कडील खील-बताशे व दीये खरीदते हैं। यह त्यौहार बच्चो को बहुत पसन्द हैं। यह त्यौहार परिवार के सभी लोग और सभी. जातियों पिल-जुल कर मनाती हैं। रात्रि को यमुना किनारे दीपदान भी किया जाता है। दीपावली का दूसरा दिन अन्नकूट के नाम से मनाया जाता है ब्रज प्रदेश में गोवर्धन मे यह त्यौहार बहुत उत्साह से मनाया जाता है। कृष्ण सबधी पर्व होने के कारण बृज के सभी मदिर फिर से सज जाते हैं। भगवान को छप्पन भोग कराया जाता है। गोवर्धन पर्वत की पूजा व परिक्रमा भी की जाती है। प्रत्येक घर के आगन या




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