आधुनिक हिंदी में बाल साहित्य का विकास | Adhunik Hindi Main Bal Sahitya Ka Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाल साहित्य की पहचान बालक देश का भावी कर्णधार है । आज का बालक कल का राष्ट्र निर्माता है । अपनी योग्यता के बल पर वह जब बुराइयो को दूर कर अपने समाज तथा देश में नई चेतना भरता है तब वही राष्ट्र विकसित होकर उ नतशील देशो के समक्ष खडा होने योग्य हो जाता है । कितु आरभ मे बालक का मस्ति के कोरी स्लेट की तरह होता है जिस पर कुछ भी लिखा जा सकता है । अत उसके अनिश्चित एव अनिर्धारित भविष्य की रूपरेखा देना हमारा काम है और यह कार्य साहित्य के माध्यम से किया जाता है । इसलिए बाल साहि य की महता अय साहिय से अधिक बढ़ जाती है । बाल साहित्य का महत्व अब भावश्यकता इस बात की है कि बालक के मन और मस्तिष्क को स्वस्थ बनाने के लिये आरभ से ही उनकी शिक्षा दीक्षा का प्रबंध किया जाय । विद्यालयों के सीमित पाठ्यक्रमों के सकुचित दायरे से निकाल कर उड्ढे देश विदेश के विस्तृत साहित्य से परिचित कराया जाय जिससे उनका बौद्धिक विकास नतिकता का उत्थान एव चरित्न निर्माण हो सके । इसका यह अर्थ नही कि विद्यालय के पाठ्यक्रमानुसार शिक्षा ब चो को दी ह्वीन जाय । इसके साथ उनके लिए त कालीन सामाजिक वैज्ञानिक भौगोलिक खगोलीय विषयों को ध्यान मे रखकर सरल-सुस्पष्ट भाषा मे साहित्य की रचना हो जो कविता कहानी या नाटक किमी भी माध्यम से प्रस्तुत किया जाय 1 हमारा देश जब अग्रजो के शासन काल मे पराधीनता का दुख सह रहा था यक्ति की अभिव्यक्ति मूक हो गई थी. तब भी गिने चुने विद्वान ! साधारण जनता को स्वतब्नता के लिए प्ररित करने के साथ ही बालकों में भी नवीन चेतना एव जागरण का मत्न फूँक रहे थे । उन दिनो उनके सामने देश वे महापुरुष ही आदर्श थे जिनका चरित्न बालकों के समक्ष प्रस्तुत कर अपने उद्देश्य की पत्ति कर रहे थे । स्वतन्न भारत मे शिक्षा के प्रति प्राचीन मायताओो एव सकुचित धारणाओ को दूर कर दिया गया एवं युगानुरूप श्रष्ठ बान साहिय की रचना होने लगी । देश के सुधेय यशस्वी लेखक (आचार्य रामलोचन शरण




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