वैदिक विचारधारा का वैज्ञानिक आधार | Vaidik Vicharadhara Ka Vaigyanik Aadhar

Vaidik Vicharadhara Ka Vaigyanik Aadhar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रथम अ्रध्याय मन (एप) भौतिकवादी दृष्टिकोण पर क्या मन को दारोर से पृथक्‌ सत्ता है ? 1. समस्या का रूप मन तथा शरीर .आ्रापस में एक-दूसरे के साथ इस प्रकार बचे हुए है कि यह निर्णय कर सकनाःकठिन है कि श्रन्तिम तथा यथार्थ सत्ता शरीर की है या मन की है । शरीर तो दीखता है, मन नहीं दीखता, इसकी तो कल्पना ही की जा सकती है। कही ऐसा तो नहीं कि शरीर की ही वास्तविक सत्ता है, मन केवल शरीर की ही उपज है, शरीर का ही परिणाम है। भौतिकवादी मन को नहीं मानते, उनका कहना है कि वह वस्तु जिसे हम मन कहते हैं, शरीर की ही किन्ही परिस्थितियों का परिणाम है। उदाहरणार्थ, श्रन्थाघुन्ध शराब पी लेने के वाद आदमी को एक की जगह दो दिखलाई देने लगते हैं, एल-एस-डी० लेने के बाद व्यक्ति झनुभव करने लगता है कि वह श्रासमान मे उड रहा है, जिगर राव होने के बाद रोगी के जीवन मे निराशा का श्रन्धकार छा जाता हैं। इन सबसे सिद्ध होता है कि जिस वस्तु को हम मन या विचार कहते हैं वह भौतिक का ही परिणाम है । परन्तु मनोवैज्ञानिक इससे उल्टी बात कहता है । वह कहता है कि मन का गरीर पर प्रभाव होता है । उदाहरणार्थ, श्रयर किसी को यकायक खबर दी जाय कि उसे लाटरी में एक लाख मिल गया है, तो उसका हार्ट फेल हो सकता है. ्रगर किसी पर किसी प्रकार का भय छा जाय, तो उसका मस्तिप्क विक्वत हो सकता है, क्रोध मे तो हर-किसी का. चेहरा लाल हो जाता है, व्यक्ति के




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