कवि रहस्य | Kavi Rahasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.86 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११. )
दुर्वाप्रकाण्डरचिरास्वगरूपभो गात्
गोडाज्नासु चिरमेष चकास्तु वेष! ॥।
[चन्दनचर्चितकचन पर विलसत सुन्दर हार ।
सिरचुम्बी सुन्दर दसन वाहुमूल उधघरार ॥
अगुरु लगाये देह में दूवों दयामल रूप |
शेमित सन्तत हो रही नारी गोड अनूप ॥]
उन देशों मे जाकर काव्यपुरुष ने जैसी वेशभूषा धारण की
वहाँ के पुरुषों ने भी उसी का अनुकरण किया । उन देशों मे
जैसी भाषा साहित्यवधू बोलती गई वहाँ वैसी ही बोली बाली जाने
लगी। उसी बाल चाल की रीति का नाम हुआ 'गोडी रीोति--जिसमे
समास तथा अनुप्रास का प्रयोग अधिक होता है । वद्दों जो कुछ नृत्य
गीतादिकला उन्होंने दिखल्ाई उसका नाम हुआ “भारतीदृत्ति? ।
वहाँ की प्रवृत्ति का नाम हुआ “रोद्रभारती” ।
वहाँ से सब तोाग पाथ्वाल की श्रार गये। जहाँ पाथ्वाल-शूरसेन- ”
हस्तिनापुर-काश्मीर-वाही क-वाह्लीक इत्यादि देश हैं । वहाँ जो वेशभूषा
साहित्यवधू की थी उसका वर्णन ऋषियों ने यों किया--
ताटडूवरगनतर ज्ञितगण्डलेख-
मानाभिलम्बिदरदे।लिततारहारमू ।
आश्रोणियुरफपरिमण्डलितोत्तरीयं
चेष॑ नमस्यत मद्दोदयसुन्दरीणाम ॥
* तिडकी चश्वचल ऋलती सुन्दरगोलकपोल ।
नाभीलम्बित हार नित लिपटे वख्र अमल ।]
इन देशों में जो चृत्यगीतादिकला साहित्यवधू ने दिखलाई
उसका नाम “सात्वतीवत्ति' श्रौर वहाँ की. बोल-चाल का
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