केशव ग्रन्थावली भाग 3 | Keshav Granthawali Part -3

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Keshav Granthawali Part -3 by धीरेन्द्र वर्मा - Deerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संपादकीय श्द्े केडिया ने विशेष सहायता की । फिर भी अ्रभी पाठ वाछित रूप नहीं प्राप्त कर सका है । इसकी एक टीका का भी पता चला है । राजस्थान में दिदी के हस्तलिखित श्रथो की खोज के द्वितीय भाग से दो महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती है--एक रसिकप्रिया की सस्कत टीका की और दूसरी शिखनख की गुजराती टीका की । शिखनख -टीका की पुष्पिका यो है-- इति श्रीकेशबवदासचविरचित शिखनख संपूण । श्रीरस्तु । संवत १७६२ वर्षें मिगसर सुदि ८ भौसे लिखितं श्री भुज मध्ये पं० सागचद सुनिना । श्री । यह टीका भी मय जैन ग्रथालय में ही है । टीका उक्त दस्तलेख के लिपिकाल से ११ वर्ष परवर्ती है । सुघासर संग्रह में भी कुछ छुद इस शिखनख के सद्रहीत है । उसका श्राधार मिल जाने से उन छुदो का पाठ बहुत कुछ ठीक हो गया है । केशवदास ने नखशिख के अनतर शिखनख क्यो लिखा इसका हेतु शिखनखः के प्रसंग में ही उल्लिखित है-- नख ते सिख लौ बरनिये देवी दीपति देखि । सिख ते नख लौ मानवी केसबदास बिसेषि ॥। वस्तुतः तीन प्रकार के आलंबन होते है --दिव्य दिव्यादिव्य श्र झ्रदिव्य । देववर्ग के आलंबन दिव्य होते है झ्वतार दिव्यादिव्य श्र मानव श्रदिव्य । दिव्य श्र दिव्या- दिव्य का वर्णन नख से शिख तक और मानव का शिख से नख तक होता है । फारसी में भी सरापा होता है । उनके यहाँ दिव्यादिव्य की स्थिति नहीं है । दिव्य निर्गण है निराकार है । डरते डरते उसके चरण और हाथ की उंगलियों तक की चर्चा किसी प्रकार की गईं | अन्य अंगों का प्रश्न ही नहीं । इसी से वहाँ अदिव्य-वणुन दी बला । सरापा या शिखनख तो साहित्य में श्राया पर नखशिख नहीं । नखशिख और शिखनख का विभाग भारतीय साहित्यसरशि है । जो स्थापना केशव ने की है वह उनसे पूर्व सूरदास और तुलसीदास मे भी दिखाई देती है । उन्होंने दिव्य श्रौर दिव्यादिव्य के वर्णन में वही क्रम रखा है श्रर्थात्‌ मख से शिख का क्रम ग्रहण किया है । इससे स्पष्ट हैं कि यह व्यवस्था पारंपरिक है । ७. ७ पनखशिख के कुछ छंद शिखनख /के स्वतंत्र हस्तलेखो में पुनरुक्त है । ऐसा जान पडता है कि जब शिखनख स्वतंत्र रूप से प्रचलित किया गया तत्र उससे ये छुंद परिपूर्ति की दृष्टि से जोड दिए गए | सं० १७२४ वाली कविंप्रिया की प्रति में वे छद नहीं हैं । केवल समासतियूचक दोहा वहाँ अवश्य है । इसकी व्वर्चा पहले की जा चुकी है | नखशिख से प्रत्येक उदाहरण के पूव॑ दोहे में यह भी निर्देश है कि इस अंग के कौन कौन उपमान प्रथित है । यह योजना शिखनख? में नहीं है । जितने उपमान प्रत्येक अंग के कथित है वे सब उदाहरण मे अनुस्यूत नहीं हो सके है । उनमें से कुछ उपमान शिखनख में ग्रह्ीत हुए है । शिखनख में पॉचचवे छुद के अतिरिक्त झन्यत्र कवि की छाप नहीं है । श नखशिख मे इसके ठीक विंपरीत तीसवे छुद के अतिरिक्त सर्वत्र छाप है । शिखनख कविप्रिया के परवर्ती हस्तलेखो से कदाचित इसीलिए हटा दिया गया होगा । मुक्ते भी एक बार इसी आ्राघार पर ठिंटकना पडा । पर एक ही छुंद की छाप ने कुछ आश्वस्त कर दिया । छाप न होने का कारण यही जान पडता है कि श्रंगो के




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