इक्कीश कहानियाँ | Eakkis Kahaniyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.97 MB
कुल पष्ठ :
414
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७) स्वभाव के अच्छे पहलू के द्न्द में किया जाय तब तो हमारे हृदय में वह अवश्य उस विलक्तण॒ता के प्रति विद्रोह उत्पन्न करता है और इस प्रकार हमारे उत्थान. का कारण बन सकता है। किन्तु यदि वह चित्रण एकांगी है केवल उस विलक्षणुता का ही है तो उसे हम व्यंजना के रूप में नहीं अहण कर पाते प्रत्युत गंभीरता पूर्वक महण करते है । एवं उलटे अपनी जाति (मनुष्यता) के श्रति सशंक बन जाते है । अर्थात् झनाह्था का वह चित्र अनास्था का कोई सुधार न करके उसकी परम्परा को और भी दृढ़ करता जाता है । ... यहीं हाल कहानियों में मसानव-दुबलता के चित्रण एवं समाज के- नगर चित्रण का भी दै। ऐसा करके लेखक वस्तुतः यथाथे चित्रण नहीं करता गन्दगी को और फेलाता है । इस प्रसंग मे एक बात याद अ्पाती हे--किसी अंगरेजी कहदानी-लेखक की सम्भवतः एच० जी० वेस्स की एक कहानी है जिसमे एक सनकी किसी श्रसिद्ध डाक्टर की प्रयोगशाला मे जाता है और उसे बातों में उलकाकर किसी सीषण रोग के कीटाणुओ से भरा एक स्यूब लेकर शभागता है कि उसे जलकल की मुख्य टंकी मे डालके सारे नगर का नाश करदे । यही हाल ऐसी कहानियो का भी है। इनसे इस उन दुबंलताओों का प्रचार ही करते है नमता बढ़ाते ही हैं इसके विपरीत नही । जहाँ कितने रोग ऐसे हैं जो उभार देने इ० २
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