साहित्य - सुधा | Sahitya Sudha

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देवदत्त शास्त्री - Devdatt Shastri

पंडित देवदत्त शास्त्री जी का जन्म भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के कौशांबी जनपद स्थित महेवाघाट क्षेत्रान्तर्गत रानीपुर नामक ग्राम में हुआ था।
इनका गोत्र घृतकौशिक गोत्र था, एवं इनके वंश का नाम कुशहरा था।
यह विद्वान कुल के वंशज सिद्ध हुए क्योंकि इनका कुल पूर्व रुप से ही अत्यंत संस्कृतज्ञ एवं वेदपाठी ब्राह्मण थे, जिनमें पं भवानीदत्त मिश्र, पं देवीदत्त मिश्र, पं शिवदत्त (सिद्ध बाबा) , इनके (देवदत्त शास्त्री)पिता पं ईशदत्त मिश्र और भाई डा. हरिहर प्रसाद मिश्र उल्लेखनीय हैं।

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श्री विश्वबन्धु शास्त्री - Shri Vishvabandhu Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दतीयः पाठ: शक (७. झ् फातरूनकहारः रस्यः प्रभात-समय: | शीतः समीरों मन्द-मत्दें चहति, मनांसि व विनोदयति । आगच्छ, सखे ! उपचने5स्मिन बिहरावः । पदय, पूर्वेस्यां दिशि मरीचि-माली चक्रवाले रज्यन, डदेति । बसन्त-कालो-म्यमू । अहो दुशनीयता कुखुमानाम्‌। एते मदो(द-उन्मत्ता आ्रमराः पुप्पाणामू उपरि श्रमन्तों सघुरं शुक्जन्ति । कोकिलानां कल-कूजितैश्‌ च दिशः स्वनन्ति । उपबन-प्रवेशादू इच पुप्पाणां गन्धेन तृप्यति श्राणें प्रसीदति च चेतः। तरवो लताशु च कोमलै परलवैर्‌ नयने हरन्ति, पराग- पटलेन च भुचम्‌ आचिन्वस्ति । दिशश्‌ च नव-हरितै- सस्या 5ट्टरे प्रीतिम्‌ आवहन्ति । नव-तण मरकतम्‌ इव प्रतिभाति, तस्थो- (स उ)परि. तुपार-विन्द्वों मुक्का-शरियं लभन्ते । पुष्पिता फलिताश्‌ चुक्षाः प्रातः-पंवनेन प्रकस्पन्ते । कृपकोब्यंकरूपादू अरघड्टेन जलम्‌ उत्कपेतिं केदारांश च खिश्चति । मन्ये खिरं श्रान्तम्‌ ्राचाभ्याम्‌। पुरा सूर्या55तपश चणडो भवति, एहि, ग्रहम्‌ प्रति निचर्तावहे !




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