सामाजिक मनोविज्ञान | Samajik Manovigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका दे भ्रनूसार विधि चेतन वृद्धि श्रौर इच्छाकी उत्पत्ति नहीं है वरन्‌ लोगोंकी भ्रत्माका प्राकृतिक उत्पत्ति या प्रदर्शन है । राष्ट्री य झ्ात्माका यहू विवार वहुत श्रस्पष्ट झ्ौर मन्द रहा श्रीर ऐतिहासिक घर्मशास्नके क्षेत्रमें सफल परिणामों चाला रहा यह नहीं कहा जा सकता । जिन पुस्तकॉंका सम्वत्व हीगेंल से नहीं था वह लजारस (1.घ28105) श्रीरस्टाइंथाल (51८0५081) की थी जिनको बहुधा सामाजिक मनोविज्ञान के संस्थापक कहा जाता है ग्रौर जिन्होंने लोक मनोविज्ञान तथा भाषा विज्ञान के श्रध्ययनके लिए एक पत्र स्थापित किया जिसमें उन्होंने एक बड़ा भारी कार्यक्रम वनाया। उनका सामाजिक मनोविज्ञानका विचार रोचक है श्रौर सारभूत वातोंमें डा ० मै क्डयूगलसे भिन्न नहीं मालूम होता। लज़ारस कहते हैं कि लोक-मनोविज्ञानका कर्तव्य उन विधियोंको ढूंढना है जो जहां कहीं भो वहुत्ततते लोग एक साथ रहते भ्रीर कार्य करते हू वहीं क्रियाशील हो जाती हूँ। इसका कार्य लोगोंके सम्पूर्ण जीवनका वह वैज्ञानिक वर्णन देना है जैसा कि उनकी भायषा कला घर्म प्राचरणमें दिखाई पड़ता है श्रौर सबसे श्रघिक जो परिवर्तन लोगोंके मस्तिष्कोंमें होते हैं उनकी क्रमिक उच्चति शरीर द्वाससे व्यवहार करना है। कार्यविधि बिल्कुल श्रनुभव श्रीर निरीक्षण पर श्राश्रित होनी थी श्र्थात्‌ प्रत्यक्ष निरी क्षणों तथा उन तथ्योंकी परीक्षा पर घाश्रित होनी थी जो नृवंशविद्या (601010छूफ़) तथा मनुष्य जौवनके भ्रन्य विज्ञानोंके द्वारा दिए गए हैं। लोक मनोविज्ञानके दो भाग होने थे एक उस सामान्य नियमोंसे व्यवहार करने वाला जो सब समूहों या लोगोंमें साघारण प्रमेयोंके ग्राघार में हूं श्रौर दूसरा जिसे वह मनोवज्ञानिक नूवंश- विद्या कहते हैं जिसका सम्वन्व लोगों शरीर समूहोंकी मनोवैज्ञानिक विचित्रताग्ोंसे है। (इसके साथ मे क्ड्यूगलके निम्नलिखित कथन की तुलना की जा सकती है समूह-मनो विज्ञानके ठीकसे दो भाग हूं एक वह जिसका सम्वन्च सामूहिक जीवनके सबसे सामान्य नियमों को हूंढना है श्रौर दूसरा वह जो इन नियमोंको विशेप प्रकारके श्रौर सामूहिक जीवनके उदाहरणोंके श्रघ्ययन में कार्या न्वित करता है । -- 1%6 (उा०्ण्फु वीफत फ. 6). लज़ारस श्र स्टाइंथाल के कामका महत्व श्रांकना कठिन हू। सामाजिक मस्तिण्ककी प्रकृतिके सम्बन्चमें विवादका निषेघ करनेके भ्रतिरिकत (जिसमें




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