भारत भ्रमण भाग - 3 | Bharat Braman Part-iii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.36 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ गया-१८९ रे. (दर७ )/
रेलवे स्टेगनसे १३ मीछ पूर्वोत्तर पुरानी गयाक उत्तरका फाटक जी मील, फल्फूके
वाये विष्ुपद्का सत्दिर है । पुरानी गयाका खास दाहर, जिसमे गयावालान सकान हैं,
फू नर्दाके पश्चिम किनारेपर उत्तरसे दक्षिण ६ सील लम्वा और पूर्वसे पश्चिम टै मीछ
चौड़ा है । उसके चारो दिजाओमें ४ फाटक हैं । सकान पुराने ढाचेके चोसंजिले पद
मजिले तक बने हैं । उत्तरके फाटकसे दृक्षिणके फाटक तक गच कीहुई एक सडकह । डी
तीची भरूमिपर गहर वसा है । जगद्द जगदद पथरीठी जमीन दै । फठगुके किनारेपर न्रह्मनी
घाट, गायत्री घाट, वकुआ घाट, सोमर घाट, जिह्लालोल, गदाघर घाट आदि है ।
पश्चिम फाटकसे बाहर एक सडक उत्तरसे दक्षिण गई हे जिसके पश्चिम वगलपर पश्चिम
फाटकसे कुछ दक्षिण रामसागर मह्ेमं करीब १८५ गज छम्वा और इसस आधेखे अधिक
चौड़ा रामसागर नामक ताठाव है । जिससे दक्षिण चान्दचौरा वाजार है ।
गयासे पूवे फरगूके दहिले किनारपर सगकूट पहाड़ी, दक्षिण-पश्चिम सस्मकूट
( जिसको छोग मुरली पहाड़ी कदत हैं. इसके शिरपर एक मन्दिर देख पडता है ) और
न्नह्मयोनिकी पहाडी, उत्तर सादबगजके वाद रामशिछा पहाड़ी और पश्चिमोत्तर भ्रतशिला
पद्दाडी देख पड़ती है ।
गया श्राद्धके लिये भारतवर्पमे प्रधान दै । वहाँ प्रतिदिन श्राद्ध करनेके छिये यात्री
पहुँचते हैँ, किन्तु आश्चिन मासका छष्णपक्ष गया श्राद्धका सर्वे प्रधान है । उस समय भारत-
दर्षके प्रत्यक विभागोाके छाखो यात्री गयामे आते हैं । और धनी लोग गयावाल पण्डॉको
बहुत दक्षिणा देते हैं। गयाके पण्डोंमि बडे वडे धनी हैं । आश्धिनके वाद पौप ओर चैत्नके कृष्ण-
पक्षमे भी वहुत यात्री गयामे पिण्डदान करते हैं ।
श्राद्कके स्थान और विधि--( १.) पूर्णिमाके दिन फल्णु नदीमें एक वेर्दापर
खीरका श्राद्ध, तर्पण और पण्डाकी चरण पूजा होती है । फल्गू नदी गयाके पूर्व बहती हुई
दृक्षिणसे उत्तरको गई हे । फल्गूका विशेष माहात्म्य नगकूट और भस्मकूटसे उत्तर और
उत्तर-मानससे दृक्षिण हैं । नगकूटसे दृक्षिण फल्युका नाम महदाना है । गयासे ३ मील
दक्षिण नीलांजन नदी दृद्दिनिसे आकर सहाना नदीमें मिली है । संगमसे करीब १ मी
दक्षिण सरस्वर्तीके मन्दिरतक इस नदीका नाम सरस्वती है । मधुश्रवा नामक एक छोटी नदी
दृद्धिण-पश्चिमस आकर गयाके दक्रिण मद्दाना ( फल्गू ) नदीमें मिली है, जिसकी धारा
बरसाघके वाद फल्गूसें अढग होकर गदाधरके मन्दिरके नीचे वद्दती है.। वर्षाकाछके अतिरिक्त
दूसरी ऋतुओमे फल्गू नदीमें पानी नददी रहता, परन्तु वाद खोदनेपर साफ पानी मिठ जाता
६ ।नदीमें पानी रहने परभी छोर वाद्धू हटाकर स्वच्छ पानी छेजाते हैं विष्णुपदके पूर्व फल्गुके
दहिने किनारेपर नगकूट पहाडी, वाँये किनारेपर भस्मकूट पहाड़ी और विष्णुपद्से ऊगभग
१ मील उत्तर उत्तरमानस नामक सरोवर है ।
(२) कृप्ण प्रतिपदाके दिन ५ वेदीपर पिंडदान करना होता है, रामशिला, रामकुण्ड,
तशिछा, न्रह्ककुण्ड और कागबलि । रामथिला और रामछुण्ड-विप्णुपद्के मन्दिरसे करीब
३ मोल साहदवग'्रके पासही उत्तर फहगूके पश्चिम किनारेपर रामशिला पहाडी है, जिसके
पूव वगढके नीचे दीवारसे घिरा हुआ ब्रह्मकुण्डसे वहुत वडा रामकुण्ड नामक तालाव है ।
यात्री गण श्रेतशिठासे ढीटनेपर इसके किनारे एक वेदीका पिंडदान करते हैं और पीछे
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