सीकरी की दीवारें | Sikari Ki Deewaren
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.24 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सीकरीकी दीवारें १७
सायेमे जा खड़ी हुई । जानती थी, खानखानाके जातें ही राजा
दस्तक देने उधर मुडेगा । राजा मुडी ॥
जहाँनारा--फिर् ?
सकीना--फिर, शाहजादी, राजा मुडा । मीनारको दस्तक देनेके लिए
जैसे ही वह शुका, उसने मुन्चे देखा । कुछ ठिठका, उसके मुंहसे
हल्के-से निकल पडा--'कही देखा हैं।' 'देखा है', में वोली,
'प्रकोटेके पीछे, उसकी वगरूमे जिसका नाम कोई नही ले
सकता । राजाकी आँखे चमकी । वोला--'परकोटेके पर्देके
पीछे, हाँ । और हाँ, उसकी वगलमे जिसका नाम मेरे हियेका
सेद हूँ ।'
जहाँतारा--फिर ? फिर ?
सकीना--फिर मेने कहा--“'वबत नहीं हैं? बस इतना है कि इसे दे दूँ ।'
और मेने आपका मोतियोका हार उसकी ओर बढ़ा दिया । पछ
भरमे दिलेर राजाके कन्वें झुक गये, लाहजादी । घुटने टेक उसने
झुके सिरके ऊपर अपने हाथ उठा लिये । हार मैने उसकी खुली
हथेलियोपर रख दिया । हारकों गलेमे डालता राजा वोला--
“कहना उस देवीमे, जो हार ले सुका हूँ उसे इस मुवताहारके
वदले कंसे टूं ? पर उसे हृदयपर रखे छेता हूँ जहाँसे इसे भौत
भी अलग न कर सकेगी । कहना, “गँवार राजपूतका कन-कन
उस नामको टेर रहा है जो जवानपर नहीं लाया जा सकता ।'
जहाँनारा--सकीना, तू सोना है ! अच्छा, फ़िर ?
सकोना-दफिर राजा उठा । चला गया । उसके पैर वोझसिल हो रहें थे,
मन-मन भरके, जैसे उठते न हो । मेनें उसे अँधेरेमे धीरे-धीरे
गागव होहे देखा । जैसे सूरज पहाडके पीछे छिप जाता हैं, राजा
भी दीवारोंके पीछे सुड॒ गया । पर जैसे सूरजका तेज ड्वकर भी
नहीं खोता, राजावा तेज भी उस घृंधलेमे रोशन था 1
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