दहेज़ | Dahej
श्रेणी : निबंध / Essay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.51 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्बन्ध ] [ ११
न आटा
इयो का सामना करना पड़ेगा ।
गगाघर--सो केसे ?
दसडी--जिन घरो मे स्त्रियों नहीं होती उन घरो की कन्याद्रो के साथ
सम्बन्ध सम्पन्न हो जाने पर सामाजिक रीति रियाजो में सदा श्रपूणता
ही बनी रहती हें कारण यद्द हे कि पुरुष समाज उनसे पूर्ण श्रमिज्ञ
नहीं होता ।
शगाघर--यहद ठीक हें, किन्ठु क्या ये श्ादर्ण श्ापफे ध्यान में नहीं है ?
सिंह भोग, सुपुरुप घचन,
केलि फले इक डार ।
तिरिया तेल, हमीर हठ
पढ़े न दूजी बार 1
ध्य तेल चढ़ी कन्या के विपय में कोई अन्य विचार क्या कर सकता हें ।
इस डी--महेशदास सदेव रुगण रहते हैं ; उनकी स्थिति भी श्रच्छी नहीं
हे उनके उत्तराधिकारी भी उनके श्रतिरिक्र दूसरा कोई नहीं है ।
हसके थ्तिरिद्रा'द्ाप मे साथ समता भी तो नहीं मिलती । शास्त्रों
का चचन हूँ.---
ययोरेव समं वित्ते ययोरेव समं कुलमू ।
तयोरविवाह सख्यघ्न नतु पुष्ठविपुप्टयो. 1
सिनकी धन सम्पत्ति तथा वश समान हो उनको ही परस्पर
दिवाह सम्बन्ध सूत्र सें वद्ध होना चाहिए ।
गगाघर--( मेंद स्वर मे ) हरेरिच्छा वलीयसी”
दमडी--फेशवदास जी एक पुरुपरत्न दे उनका हृदय विशाल हें। वढे
भाग्यशाली हैं । इस समय घ्यापार सें उनका सितारा चमक रदा हे |
उनकी इकलौती पुत्री ही श्तुल सम्पत्ति की एकमात्र उचराधिका-
हियी हैं ।
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