गीत और पत्थर | Geet Or Patthar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.84 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सो रुपये पद
मसाला श्र हरी पत्ती वाला पान ही साया क्योकि सुके भूख चहुत
लग रही थी भर सेरी जेय सें सिर्फ झेढ़ झाना ही था श्र यह पान जो
मेने खाया पहुत कासी सोटा होता है 'मौर देर तक सु में रहता है ।
फिर सेंते एक पाने वा ट्राम का टिकट लिया श्र ट्राम में बैठकर
मैंने जोर से सेठ की पिल्दिंग की तरफ थूक दिया ।
दसरे दिन फिर सेठ वहीं नहीं था । उसके मेनेजर ने कहा, “सेठ
श्राज भी यहाँ नहीं है 'लौर फिर चुम्हारे हिसाब से कुछ ग्नती भी हे ।””
सुके युरसा श्रा गया । में हिसाव दे चुका था। मंमेजर दस बार
उसे 'चेक कर चुका था । किर भी गलती निकल '्राती है में कुछ समस
न सका | क्योंकि मैनेजर का लहज़ा बहुत नरस था श्रौर उसका हर
दादय रेगम सें लिपटा हुआ था
मेने दहा, “मेरा दिसाव तो सहुत साफ़ है ।”
इतना कहकर सैने '्रपनी ररादी एतलून की जेब से एक मेला पुर्जा
निकाला घौर मेनेजर के साथ ग्यारहदीं ढफा दिसाय चेझ यरने बेठ
गया । इतने देखे रेगमार करने के, टरतने पेसे रोगन के, इतने पैसे मज-
दूरी के, रेगमार श्रोर रोगन की रसीदें मेरे पास मौजूद थी, मजदूरी
पहले से तय हो चुनी थी, सेठ का फरनीचर सेरी मेहनत से जगमग-
जगमग कर रहा था ।
मनेजर ने दहा, “हाँ, हिसाय डीक है । श्रच्छा, कल ध्ाना ।”
“मगर कल जरूर” मैने जरा जोर ढेकर कहा ।
हाँ, बल जरूर” मेनेजर ने चुँ दिया को सहलाते हुए कहा ।
वाइर घानर सन दा पश्ें का पान भी नहीं साया । एक थाने का
ट्राम टिच्र सी नहीं लिया प्रौर फिरोज़शाद मेहता रोठ से सायन तक
पद़ल गया ।
मगर दूसरे दिन फिर सेठ के दफ्तर गया ।
श्वाच भी उफ्तर सें सेठ हाजिर नहीं था घोर सेनेजर भी सायय था।
मनजर का श्सिस्टेन्ट ध्पनी लुँ घियाई हु ध्राँसों से एक सिंगल चाय
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