अप्सरा | Apsara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.39 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न हू. अप्सरा -.. *+ हे,
मरीचिका . के : ज्योति-चित्रों की तरह आतीं, अपने ,यथाथें
स्वरूप में नहीं । ६... मे
कनक की दिन-चयाँ वहुत साधारण -थी। दो 'दासियाँ
उसकी देखरेख के लिये थीं । पर उन्हें प्रतिदिन. दो वार उसे
नहला देने और तीन-चार बार चख्र बदलवा देने के इंत*
ज़ाम में ही जो कुछ थोड़ा-सा काम था; बाक़ी--समय यों हीं
.कटता था ]/कुछ समय साड़ियाँ चुनने में लग जाता था ।
कनक प्रतिदिन शाम को मोटर पर किले के मेदान की तरफ़.
निकलतीं थी । डाइवर की बराल में एक अदेली बैठता था।
पीछे की सीट पर अकेली कंनक। कनक प्रायः श्ासरण नहीं -
पहनती थी । कभी-कभी हाथों में सोने की चूड़ियाँ डाल लेती...
थी, गले में एक॑ हीरे -की कनी का जड़ाऊ हार 3 कार्सी में हीरे .
के दो चंपे पड़े रहते थे । संध्या-समय;' सात बजे के बाद से
दस तर्क, और दिन में भी इसी तरह सात से दस तक पढ़वी
थी । भोजन-पान में बिलकुल सादगी; पर पुष्टिकारक भोजन
उसे दिया जाता था ।
(३ )
धीरे-धीरे; ऋतुओं के सोने के पंख फड़का; एक. साले और
. उड़ गया । मन के खिलते हुए प्रकाश के अनेक भरने . उसकी
_ 'कमल-सी व्माँखों से होकर. बह गए । पर अब उसके मुख से
' 'ाश्चय की जगह ज्ञान की मुद्रा चित्रित हो जाती; वह
शव अपने भविष्य. के-पट.पर तूलिका चंला लेती है.। साल-
कु
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