अप्सरा | Apsara

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Apsara by निराला - Nirala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न हू. अप्सरा -.. *+ हे, मरीचिका . के : ज्योति-चित्रों की तरह आतीं, अपने ,यथाथें स्वरूप में नहीं । ६... मे कनक की दिन-चयाँ वहुत साधारण -थी। दो 'दासियाँ उसकी देखरेख के लिये थीं । पर उन्हें प्रतिदिन. दो वार उसे नहला देने और तीन-चार बार चख्र बदलवा देने के इंत* ज़ाम में ही जो कुछ थोड़ा-सा काम था; बाक़ी--समय यों हीं .कटता था ]/कुछ समय साड़ियाँ चुनने में लग जाता था । कनक प्रतिदिन शाम को मोटर पर किले के मेदान की तरफ़. निकलतीं थी । डाइवर की बराल में एक अदेली बैठता था। पीछे की सीट पर अकेली कंनक। कनक प्रायः श्ासरण नहीं - पहनती थी । कभी-कभी हाथों में सोने की चूड़ियाँ डाल लेती... थी, गले में एक॑ हीरे -की कनी का जड़ाऊ हार 3 कार्सी में हीरे . के दो चंपे पड़े रहते थे । संध्या-समय;' सात बजे के बाद से दस तर्क, और दिन में भी इसी तरह सात से दस तक पढ़वी थी । भोजन-पान में बिलकुल सादगी; पर पुष्टिकारक भोजन उसे दिया जाता था । (३ ) धीरे-धीरे; ऋतुओं के सोने के पंख फड़का; एक. साले और . उड़ गया । मन के खिलते हुए प्रकाश के अनेक भरने . उसकी _ 'कमल-सी व्माँखों से होकर. बह गए । पर अब उसके मुख से ' 'ाश्चय की जगह ज्ञान की मुद्रा चित्रित हो जाती; वह शव अपने भविष्य. के-पट.पर तूलिका चंला लेती है.। साल- कु




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