आचार्य शुक्ल के समीक्षा सिद्धांत | Acharya Shukra Ke Samiksha Sidhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.49 MB
कुल पष्ठ :
508
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे )
सन् १६२३-२४ ई० के श्रासपास दिखाई पड़ते हैं ।* श्रत: शुक्लजी के श्रागमन
के पूर्व का हिन्दी-समीक्षा-काल द्विवेदी-युग का मध्य-काल निश्चित होता है ।
इसलिए, उनके झागमन के पूर्व की समीक्षा-प्रदत्तियों का सम्बन्ध इसी काल से
माना जायगा |
शुक्लजी के झागमन के पूर्व सैद्धान्तिक समीक्षा की प्रमुख प्रवृत्तियां-
द्विवेदी-युग के मध्य-काल में हिन्दी-समीक्षा की ४ प्रमुख प्रदत्तियां दिखाई
पड़ती हैं:---
१, परम्पराचा दी, २. पुनरुत्थानवादी,
३, नवीनतावादी तौर ४. समन्वयवादी,
त्रत: ये ही प्रवृत्तियां शुक्लजी के त्ागमन के पूर्व की सेद्धान्तिक समीक्षा की
प्रवृत्तियाँ मानी जायेगी ।
परम्पराचादी प्रचूत्ति--
सेद्धान्तिक समीक्षा हिन्दी को संस्कृत की विरासत-रूप में मिली, इसीलिए,
उसकी प्रवृत्ति आारम्भ से हो परम्परावादी कोटि को थी । हिन्दी-तमीक्षा के
प्रथम युग के रीतिकालीन श्राचार्य सुनिश्चित जीवन-दर्शन, सांस्कृतिक दृष्टि,
रवात्म चिन्तन, तार्किक शक्ति एवं विदज्षेषण-शैली के श्रभाव में परम्परा में युग
के झनुसार परिष्कार,; विकास तथा नवीनता लाना तो दूर रहा, उसका ठीक
अजुकरण भी नहीं कर सके । इसीलिए उस युग में संस्कृत-समीक्षा के सात सम्प्रदायों
में से केवल तीन-ग्रलंकार, रस तथा '्वनि-सम्प्रदायों के श्रनुकरण का प्रयत्न
किया गया । रीति और गुणवाद, काव्यांग-विवेचन वाली पुस्तकों में काव्य-तत्व
के रूप में उठाकर रख दिये गये, श्रौचित्यथाद काव्य-परिभाषा के भीतर कहीं
कहीं चुपके से बैठा दिया गया तथा वक्रोक्तिवाद एक श्रलंकार के भीतर केन्द्रित
कर दिया गया | *
रीतिकाल में आ्रलंकार-निरुपण का कार्य सबसे श्रधिक डुद्आ किन्तु वैज्ञानिक
दृष्टि के झभाव में केवल संस्कृत के लक्षण-अन्थों के श्रलंकार-लक्षण पद्य-बद्ध हुए,,
शऔर वे भी कहीं कहीं भ्रामक और शपर्यात्त थे 13 कहीं कहीं उनके सेदोपभेदों
का निरूपण झधिक हुआ; किन्ठु उससे झ्रलंकार की प्रकृति नष्ट हो गई तथा
प-देखिए; .. इ-खिय समोलाशश्ियों बाला अभय ल् एप
र-हिन्दी झालोचना : उद्धव श्रौर विकास; डा० भगक्त् स्वरूप मिश्र;
-. पृ० १९८, १९९, २०४,
दे 9 वी गग जक पू० १५,
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