गीता का ज्ञानयोग | Gita Ka Gyanyog

Gita Ka Gyanyog by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीदरिः श्रीमड्भगवढ्ीताका संक्षिप्त परिचय श्रीमद्भगवद्ीता एक अत्यन्त अलौकिक एवं विचित्र ग्रव्य है । इसमें मनुष्यमात्रके कल्याणकी बात कही गयी है | इस प्रन्थकी अनेक विक्षणताओमें एक विंढक्षणता यह भी है कि यह मनुष्य सात्रके अनुभवपर आधा है | श्रीमद्गगवद्दीताके प्रारम्भमें ध्रृतराष्ट्र और संजयका संवाद है । श्रृतराष्ट्रने पूछा कि युद्धके लिये एकत्रित मेरे और पाण्डुके पुत्रोंने क्या किया ? उत्तरमे सजयने दुर्योधनके द्वारा द्रोणाचायको कही गयी युद्धभूमिमे एकत्रित दोनो सेनाओके प्रधान झारवीरोकी महिमाका चणन किया | दुर्योधनने द्रोणाचायसे बहुत चतुराईके साथ बात की; जिसे सुनकर द्रोणाचाय कुछ बोले नहीं, चुप ही रहे । इस बातका दुर्योधनपर प्रभाव पड़ा और वह दुखी हो गया | तब दुर्योधनको प्रसन करनेके छिये पिंतामह भीष्मने सिंदके समान ग्रजकर दाह बजाया*। फिर कौख और पाण्डव सेनाके शक्ल और बाजे बजे निसकी बहुत भयंकर '्वनिं हुई । इस मयंकर ध्वनिसे शतराष्ट्रके सम्बन्धियों ( कौरवों )के हृदय विदीण हो गये ( १। १९ ; क्योकि वे अन्यायके पक्षमें थे । परतु पाण्डवोके हृदय बिल्दुल्ठ अच्चढ रहे; क्योंकि वे न्यायके पक्षमें थे । ग्यारद अक्षौहिणी जागातयुतल्‍यल्‍ल्‍स्‍ल्‍एएएएल्‍एल्‍एएए।।एनएशशशएटयययटटटटटलवयअ& कक दयलपदयदलवदयदयदरददरमेलीवि्ेवदिविदवययाविदयदावग्वयधथकद भीष्मने दुर्योधनके हृदयमें हृष॑ उत्पन्न करते हुए ( तस्‍्य सजनथन्हषें ) सिंहके समान गरजकर शाह बजाया ( १। १२ ) इस बातसे यह्दी सिद्ध दोता हैं कि दुर्योधन दुश्खी था । मी० झा० १--




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