भुवन विक्रम | Bhuwan Vikram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.32 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भुवन विक्रम भू
२ द
सरयु नदी की घार पतली होने पर गहरी थी । श्रयोध्या-जनपद
घौर उसके पडोसी जनपदों में पानी नही बरसा था, परन्तु हिमालय
भर उसकी तराई मे फिर भी थोड़ा बहुत बरसता रहा था । सरयू में
नावें ्रातती-जाती थीं जिन पर बड़े व्योपारियों का साल लदता-उत्तरता
था । यहाँ से कपड़ा, मोरों के पंखे, मिचं, मसाले, सुगन्घ, बढ़िया लोहे
के हथियार, जब फसल शझच्छी हो तब श्रन्न, तेल, भेजे हुये रस्से इत्यादि
बाहर जाते थे--बाबुल (बावेरु) फखिश (फिनीलिया) मिस्र, भरब
इत्यादि देशों को; श्रौर वहाँ से बढ़िया कम्बल, सोना चाँदी, मोती मुूंगे
इत्यादि यहाँ भ्राते थे । बेलगाड़ियों, बलों, गघों श्रौर ख्चरों के टदांड़ो
द्वारा भीतरी व्यवसाय चलता था । उत्तर भारत मे श्रयोध्या व्यापार
का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था । श्रयोध्या में श्रायंवरिक श्रौर विदेशी परिण
र(फ़रिश) इस व्यापार को चलाते थे । इन लोगो के हाथ में जहाँ टीन
:और लोहे की खानें थी, इन घातुझो की खुदाई और बनाई-ढलाई का
भी काम था। राजा को इनके करों से प्रचुर श्राय हो जाती थी ।
श्रयोध्या के ऐसे व्यापारियों में उस समय सबसे बढ़ा, घनाढ्य श्रौर
प्रमावशाली नील परिण था--हिमानी का पिता । श्रकालों के कारण
इसका महत्व श्रौर बढ़ गया था
,, « नील कन्सुस था, पर कड़े वाला भी । भीतर-भीतर कर श्रौर ऊपर
“ऊपर बड़ा दिष्ट । हंसने मुस्कराने वाला भी । लड़की को प्यार करता
(था, पर उससे भी बढ़कर अपने भविष्य को । हिमानी की माँ नहीं थी
तो क्या, नील का वर्तमान तो उसके साथ था--और दुर के भविष्य की
आशा भी । हिमानी ने वर्तमान मे श्रपने को ढाल लिया था श्ौर भविष्य
को वर्तेंमान की चुनौती देने के स्वभाव वाली होती जा रही थी । -
' , नील के पास नौकरो की भीड़ थी- इनमे से बहुत से दास । ,
, _ केवल श्रार्य वातावरण मे दास प्रथा का पनुपना कठिन था । वर्णा-
श्रम की प्रणाली में शूद्र तो थे, पर दौस नही थे। अष्यापन श्रौर श्रष्ययन
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