भुवन विक्रम | Bhuwan Vikram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भुवन विक्रम भू २ द सरयु नदी की घार पतली होने पर गहरी थी । श्रयोध्या-जनपद घौर उसके पडोसी जनपदों में पानी नही बरसा था, परन्तु हिमालय भर उसकी तराई मे फिर भी थोड़ा बहुत बरसता रहा था । सरयू में नावें ्रातती-जाती थीं जिन पर बड़े व्योपारियों का साल लदता-उत्तरता था । यहाँ से कपड़ा, मोरों के पंखे, मिचं, मसाले, सुगन्घ, बढ़िया लोहे के हथियार, जब फसल शझच्छी हो तब श्रन्न, तेल, भेजे हुये रस्से इत्यादि बाहर जाते थे--बाबुल (बावेरु) फखिश (फिनीलिया) मिस्र, भरब इत्यादि देशों को; श्रौर वहाँ से बढ़िया कम्बल, सोना चाँदी, मोती मुूंगे इत्यादि यहाँ भ्राते थे । बेलगाड़ियों, बलों, गघों श्रौर ख्चरों के टदांड़ो द्वारा भीतरी व्यवसाय चलता था । उत्तर भारत मे श्रयोध्या व्यापार का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था । श्रयोध्या में श्रायंवरिक श्रौर विदेशी परिण र(फ़रिश) इस व्यापार को चलाते थे । इन लोगो के हाथ में जहाँ टीन :और लोहे की खानें थी, इन घातुझो की खुदाई और बनाई-ढलाई का भी काम था। राजा को इनके करों से प्रचुर श्राय हो जाती थी । श्रयोध्या के ऐसे व्यापारियों में उस समय सबसे बढ़ा, घनाढ्य श्रौर प्रमावशाली नील परिण था--हिमानी का पिता । श्रकालों के कारण इसका महत्व श्रौर बढ़ गया था ,, « नील कन्सुस था, पर कड़े वाला भी । भीतर-भीतर कर श्रौर ऊपर “ऊपर बड़ा दिष्ट । हंसने मुस्कराने वाला भी । लड़की को प्यार करता (था, पर उससे भी बढ़कर अपने भविष्य को । हिमानी की माँ नहीं थी तो क्या, नील का वर्तमान तो उसके साथ था--और दुर के भविष्य की आशा भी । हिमानी ने वर्तमान मे श्रपने को ढाल लिया था श्ौर भविष्य को वर्तेंमान की चुनौती देने के स्वभाव वाली होती जा रही थी । - ' , नील के पास नौकरो की भीड़ थी- इनमे से बहुत से दास । , , _ केवल श्रार्य वातावरण मे दास प्रथा का पनुपना कठिन था । वर्णा- श्रम की प्रणाली में शूद्र तो थे, पर दौस नही थे। अष्यापन श्रौर श्रष्ययन




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