रेखा चित्र | Rekha Chitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.2 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुमा्पू के अंचल में ९
(३)
खाली ः
. पहाढो और जगलों को पार करके हम खाली जा रहे हैं। स्नो-व्य,
जहाँ प्रसिद्ध कछाकार बुस्टर रहते है; काली माटी, जहाँ ढेनिश सन्यासी
स्सोरेनसैन रहते हैं, 'और जिन्हे देख कर मन मे प्रदन उंठता है कि यह
. पुरुष है अथवा स्त्री; कपार देवी, जहाँ बाबा रामदास रहते है। इन
पहाड़ो को पार करके हम आगे बढते है। हर पहाड़ की चोटी पर, कैलाश
पर दिव की भाँति, एक-एक साधू समाधि छगाए जमा हुआ है। जगत
से मुँह मोड कर वे अपनी व्यक्तिगत् मोक्ष की खोज मे लीन है। एक
“हिमालय के चित्र बनाता है, दूसरा गेरूआ पहने कुत्ते पर अपना सम्पूर्ण,
-. सुचित, उमड़ता स्नेह बरसाता है; तीसरा योंग-साघना मे छीन अपनी
शक्तियों को विकसित करने का प्रयास कर रहा है। ससार के सभी प्रयासों
से अछग ये यक्ष प्रकृति की अनुपम अल्कापुरी मे बसें है।
जहाँ पहाड के मा चारो दिद्याओ मे खुलते है, दम दीनापानी की
ओर घूम जाते है। कपार देवी इवर सबसे ऊँचा पहाड़ है, यहाँ से बर्फ
की चोटियों का सुन्दर दृष्य दिखाई पड़ता है, और बिरला जी ने देवी
के मन्दिर का पुनरुद्धार करा दिया हैं। दीनायानी का मार्ग कपडखान तक
बराबर नीचे उतरता है। यहाँ पेड बहुत कम है, डाक बंगले और
जगंछात के बँगकों के चतुदिक् पेडों के शुरमुट पहाड़ की 'वोटी पर हरे
मुकुट के समान लगते है। कपडख़ान मे पैदल रास्ता गौर मोटर का रास्ता
मिलता है। मोटर की सडक अनेक चक्कर काट कर, साँप की तरह बल
खाती हुई चलती है। इसे अकाली संडक कहते है। जब,बीस वर्ष पहले
अकाछ पडा था, आसिफ़ूद्दीला के इमामवाडे की तरह अकाल-पीडितो
“को काम देने के लिए यह सडक बनाई गई थी। अब इस सडक
पर किसी भयानक ' बन-पदु की तरह ह्कार करती, _ फूफकारती,
- केमी-कभी कोई मोटर चीड के गोद-भरे पीपो से छदी चलती है।
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