गुर्जरेश्वर कुमारपाल | Gurjareshwar Kumarpal

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Gurjareshwar Kumarpal by श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रवेश १७ पुरुपों को वुला भेजा । कृष्णदेव श्रौर उदयन, मत्हारभट्ट श्रौर सेनापति केशव आदि तो वही थे । लाट देश से काक श्रा पहुँचा । अ्व केवल त्यागभट्ट की प्रतीक्षा की जा रही थी । पता नही, वह पहुँच भी पाएगा या नही । सभी को यही चिन्ता थी कि कही उसके आ्रानें से पहले ही मालवा-युद्ध की चिनगारी न सुलग जाए । उत्तराधिकार का प्रश्न अभी हल भी नहीं हो पाया था कि यह एक श्रोर विकट समस्या उठ खड़ी हुई ! भ“्यस्तुत उपन्यास ऐसे ही श्रनिधिचत, शकाकुल वातावरण में श्रारम्भ होता है । वर्ष था विक्रम सबत्‌ ११९६ श्रौर कार्तिक महीने के आठ-दस दिन वीत चुके न, थ।




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