जगजीवन साहब की बानी भाग १ | Jagjivan Sahab Ki baani Bhag Ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.59 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बिरह शोर प्रेम का अंग पु
में बपुरा झजान का जानेँ, का कर सके बिचारी ।
बहा जात श्पपंथ के मारग, तुम जानेहूँं हितकारो ॥२॥
नेग जनम जग घस्यों श्ानि के, कबहूँ न सुद्धि संभारी ।
गजब डरयेाँ भोजाल देखि के, लीजे रब की तारी ॥३॥
बरनत सेस सहस मुख ब्रह्मा, संकर लाये तारो ।
माया बिदित ब्यापि रहि सब सह, निर्मल जोति तुम्हारी ॥४॥
गपरमपार पार को पावे, कहि कथि सब कोउ हारी ।
जहूँ जस बास पास करि जानी, तह तेट्ठ सुररात सुधारी ॥४॥
भ्नगन पतित तारि एक छिन में, गनि नहिं जात पुकारी ।
जगजिंवनदास निरखि छछबि देख्यो, सीस चरन पर वारो ॥६॥
॥ शब्द २ ॥
सब की बार तार सोरे प्यारे। बिनती करि के कहूँ पुकारे ९॥
नहिं बसि शरहै केता कहि हारे। तुम्हरे झब सब बनहि सेँबारे २
तुम्टरे हाथ घ्है भब साईं । शोर दूसरों नाहीं कोई ॥ ३ ॥
जो तुम चहुत करत सो होईं । जल थल सह रहि जाति
संमोईइं ॥ ४ ॥
काहुक देत हो मंत्र सिखाई । से! भजि शंतर भक्ति ढृढ़ाई ४
कहे ते कछू कहा नहिं जाई । तुम ज्ानत तुम देत जनाईं ६
जगत भगत' केते तुम तारा । में श्जान केतान बिचारा ७
खरन सीस में नाहाँ ठाराँ । नि्मेल सुरत निबान निहारेँ ८
जगजोवन काँ श्ब बिस्वास। राखहु सतगुरू ध्पपने पास ॥९॥
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